मां चंडी दरबार आदिवासी समाज की आस्था का केंद्र, निजी स्वामित्व अस्वीकार्य: सरपंच संतोष टेकाम
प्रशासन ने याचिकाकर्ता के खिलाफ पारित किया प्रस्ताव, जनपद पंचायत के सभा कक्ष में आयोजित हुई बैठक
बैतूल। चिचोली गोधना स्थित मां चंडी दरबार मंदिर का प्रबंधन विवाद लगातार गहराता जा रहा है। 18 दिसंबर को तहसीलदार चिचोली कार्यालय में आयोजित बैठक में मां चंडी दरबार समिति ने उच्च न्यायालय जबलपुर की रिट याचिका क्रमांक 273/2019 के आदेश के विरुद्ध अपील करने का फैसला किया। यह बैठक जनपद पंचायत चिचोली के सभा कक्ष में दोपहर तीन बजे आयोजित हुई, जिसमें तहसीलदार अतुल श्रीवास्तव, जनपद सीईओ श्री राजोरिया, जनपद सदस्य प्रमिला उइके, हल्का पटवारी टिकमे, सरपंच संतोष टेकाम, नोडल अधिकारी सहित समिति के सदस्यों और ग्रामीणों ने हिस्सा लिया।
सरपंच संतोष टेकाम ने बैठक में कहा कि मां चंडी देवी दरबार आदिवासी समाज की कुल देवी का स्थल है, जिसकी स्थापना राजा इल और उनकी पत्नी ने की थी। यह स्थान आदिवासी समाज के धार्मिक और सांस्कृतिक आस्था का केंद्र है और इसे किसी निजी स्वामित्व में देना उचित नहीं है। उन्होंने कहा कि उच्च न्यायालय के आदेश के खिलाफ पिटिशन दायर करने के लिए समिति पूरी तरह से तैयार है।
बैठक में प्रशासनिक समिति ने भी अपने पक्ष रखे। रिपोर्ट के अनुसार, मां चंडी दरबार के प्रबंधन के लिए 11 सदस्यीय समिति का गठन किया गया है। इस समिति के पास मंदिर की देखरेख, दान-दक्षिणा और अन्य व्यवस्थाओं की जिम्मेदारी है। प्रशासन ने बताया कि वर्तमान में इस समिति के पास दो बैंक खातों में कुल 40,38,534 रुपये जमा हैं। 1998 में मंदिर का पंजीकरण मध्यप्रदेश सोसाइटी रजिस्ट्रीकरण अधिनियम के तहत हुआ था।
तहसीलदार चिचोली के आदेशानुसार वशिष्ठ दुबे को मंदिर के पुजारी के रूप में नियुक्त किया गया है, जो वर्तमान में अपनी सेवाएं दे रहे हैं। प्रशासन का कहना है कि शांति व्यवस्था और लोकहित को ध्यान में रखते हुए मंदिर का प्रबंधन समिति के पास ही रहना चाहिए।
दूसरी ओर, ग्राम पंचायत गोधना के ग्रामीणों और आदिवासी समाज ने इस फैसले का विरोध करते हुए मंदिर प्रबंधन का अधिकार आदिवासी समाज को सौंपने की मांग की है। ग्रामीणों का कहना है कि मां चंडी दरबार सर्व समाज और धर्म का आस्था केंद्र है, लेकिन इसका महत्व आदिवासी समाज के लिए विशेष है। ग्रामीणों का कहना है कि मंदिर की ऐतिहासिक और धार्मिक महत्ता को देखते हुए इसे आदिवासी समाज को सौंपा जाना चाहिए। इस मुद्दे पर विवाद तब गहराया, जब प्रशासन और समिति ने दान-दक्षिणा और मंदिर प्रबंधन के अधिकारों पर अपना पक्ष मजबूत किया। सरपंच संतोष टेकाम ने कहा कि यह मंदिर आदिवासी समाज के लिए आस्था और पहचान का प्रतीक है। प्रशासन का कहना है कि किसी भी निर्णय में शांति और लोकहित को प्राथमिकता दी जाएगी।