वनों की कटाई, गंभीर पर्यावरणीय मुद्दा-शिवनी जैन एडवोकेट
ऑल ह्यूमन सेव एंड फॉरेंसिक फाउंडेशन डिस्टिक वूमेन चीफ शिवानी जैन एडवोकेट ने कहा वनों की कटाई के प्रभाव लंबे समय तक रहने वाले और विनाशकारी होते हैं। कीटों और जानवरों की पूरी प्रजातियाँ उनके आवासों के नष्ट होने के कारण लुप्त हो गई हैं। वनों की कटाई से विनाशकारी बाढ़ भी आ सकती है। वैज्ञानिकों का मानना है कि वनों की कटाई का जलवायु परिवर्तन, या ग्लोबल वार्मिंग पर महत्वपूर्ण प्रभाव पड़ता है।
थिंक मानवाधिकार संगठन एडवाइजरी बोर्ड मेंबर डॉ कंचन जैन ने कहा कि वनों की कटाई दुनिया भर में होती है, ब्राज़ील के अमेज़ॅन वर्षावनों में यह विशेष रूप से गंभीर मुद्दा है। वहां, उष्णकटिबंधीय वन और उनके भीतर पौधों और जानवरों की प्रजातियां खतरनाक दर से गायब हो रही हैं।
मां सरस्वती शिक्षा समिति के प्रबंधक एवं प्राचीन मानवाधिकार काउंसिल सदस्य डॉ एच सी विपिन कुमार जैन, संरक्षक आलोक मित्तल एडवोकेट, ज्ञानेंद्र चौधरी एडवोकेट, बृजेश शुक्ला एडवोकेट, डॉ एच सी राजेंद्र कुमार जैन, डॉ आरके शर्मा, शार्क फाउंडेशन की तहसील प्रभारी डॉ एच सी अंजू लता जैन , बीना एडवोकेट, निदेशक डॉक्टर नरेंद्र चौधरी आदि ने कहा कि
दुनिया भर में वनों की सबसे अधिक हानि अफ़्रीका और दक्षिण अमेरिका में होती है।उष्णकटिबंधीय वर्षावन ग्रह पर सभी प्रजातियों में से आधे से अधिक का घर हैं।विश्व के 73 प्रतिशत वनों पर सार्वजनिक स्वामित्व है।विश्व के केवल 18 प्रतिशत वन ही संरक्षण के लिए नामित हैं।
वनों की कटाई अक्सर कर व्यावसायिक या मानवीय आवश्यकताओं के लिए की जाती है। इसलिए वनों की कटाई आज दुनिया के सामने सबसे गंभीर पर्यावरण मुद्दों में से एक है। वनों की कटाई से
पर्यावरण और मानव जीवन पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है। वनों की कटाई से पौधों और जानवरों की आवास कम हो रहे हैं। जिससे कि उनके विलुप्त होने का खतरा बढ़ गया है।