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*प्रेरणादायक सामाजिक सरोकार की कहानी “राम का वनवास समाप्त – उजाले की ओर एक नई शुरुआत”*

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*प्रेरणादायक सामाजिक सरोकार की कहानी “राम का वनवास समाप्त – उजाले की ओर एक नई शुरुआत”*
खण्डवा//कहानी उन चार मासूमों की है, जिनके छोटे-छोटे कदम भिक्षावृत्ति की गलियों में खो गए थे — अज्ञात, असहाय, और समाज की नजरों से ओझल। यह कहानी है उस “राम” की, जो अपने तीन भाइयों – लक्ष्मण, भरत और शत्रुघ्न – के साथ ओंकारेश्वर की पवित्र परंतु व्यथित भूमि पर भटक रहा था।
जीवन के प्रारंभिक वर्षों में ही इन बच्चों ने वह देखा, जो शायद किसी मासूम को कभी न देखना पड़े — भूख, डर, और अकेलापन। लेकिन जैसे अंधेरी रात के बाद भोर होती है, वैसे ही इनकी ज़िंदगी में भी एक नई सुबह आई — खंडवा की न्यायपीठ बाल कल्याण समिति की रूप में। समाजसेवी सुनील जैन ने बताया कि जब समिति के अध्यक्ष प्रवीण शर्मा और उनकी समर्पित टीम को इन बच्चों की स्थिति का पता चला, तो उन्होंने केवल एक प्रशासनिक कार्य नहीं किया, बल्कि एक भावनात्मक जिम्मेदारी को निभाया।
न्यायपीठ बाल कल्याण समिति अध्यक्ष प्रवीण शर्मा, जो स्वयं एक शिक्षाविद्, समाजसेवी और अपने कुशल नेतृत्व के लिए विख्यात हैं, समिति अध्यक्ष के रूप में न केवल प्रशासनिक कार्यों को संभालते हैं, बल्कि बच्चों के भविष्य को संवेदना से आकार देने का निरंतर प्रयास करते हैं। उनके नेतृत्व में समिति के सदस्यों – मोहन मालवीय, रुचि पाटिल, कविता पटेल और स्वप्निल जैन – ने मिलकर इन बच्चों के लिए आशा की एक नई राह खोली।
बिना नाम के इन मासूमों को नया जीवन देने की शुरुआत नामकरण से हुई – राम, लक्ष्मण, भरत और शत्रुघ्न।
यह सिर्फ नाम नहीं थे, यह एक नई पहचान, एक नई उम्मीद और एक नई राह थी। सुनील जैन ने बताया कि राम की तबियत बिगड़ी तो उसे तत्काल चिकित्सा सुविधा के लिए खंडवा में रखा गया। स्वास्थ्य विभाग के डॉक्टर्स, महिला एवं बाल विकास विभाग, आंगनवाड़ी कार्यकर्ता, और विभागीय अधिकारी – रत्ना शर्मा (डी पी ओ), अजय गुप्ता (सहायक संचालक), टीका सिंह बिल्लौरे (बाल संरक्षण अधिकारी), पूजा राठौर और अन्य अधिकारी – सभी ने इस एक बच्चे की देखरेख को मानवीय दायित्व समझकर निभाया। जब राम की तबीयत में सुधार हुआ, तो उसे इंदौर की बाल कल्याण समिति को स्थानांतरित किया गया — एक ऐसा निर्णय, जो न केवल उपचार का, बल्कि परिवार के पुनर्मिलन का था। अब वह श्रद्धानंद आश्रम बाल गृह में अपने तीनों भाइयों के साथ सुरक्षित, स्वस्थ और सम्मानजनक जीवन की ओर अग्रसर है।
यह केवल स्थानांतरण नहीं था… यह पुनर्जन्म था। यह कहानी बताती है कि जब नेतृत्व संवेदनशील हो, प्रशासन सजग हो, और समाज सहयोगी हो, तब कोई भी “राम” जीवन के अंधेरे वनवास से निकलकर अपने “अयोध्या” की ओर लौट सकता है।
यह कहानी है…
बच्चों के अधिकारों की,संवेदनशील समाज की, और उस सामूहिक मानवीय भावना की जो कहती है: “हर राम को उसका अयोध्या मिल सकता है — अगर हम चाहें तो।”

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