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हृदय रोग और स्ट्रोक से बचाव की पहली सीढ़ी – ब्लड प्रेशर पर नियंत्रण*

सोमेश शिवंकर 

*हृदय रोग और स्ट्रोक से बचाव की पहली सीढ़ी – ब्लड प्रेशर पर नियंत्रण*

सोमेश शिवंकर

*अलीगढ:* हाई ब्लड प्रेशर या हाइपरटेंशन, जिसे अक्सर “साइलेंट किलर” कहा जाता है, एक गंभीर वैश्विक सार्वजनिक स्वास्थ्य समस्या है। भारत में शहरी और ग्रामीण दोनों क्षेत्रों की आबादी इससे प्रभावित है, और यह हृदय रोग व स्ट्रोक जैसी जानलेवा बीमारियों का प्रमुख कारण बनता जा रहा है। गैर-संक्रामक रोगों, विशेषकर कार्डियोवस्कुलर बीमारियों की बढ़ती संख्या के चलते, स्वास्थ्य प्रणाली पर हाइपरटेंशन का बोझ तेजी से बढ़ रहा है। ऐसे में इसकी रोकथाम, समय पर पहचान और दीर्घकालिक प्रबंधन की अत्यधिक आवश्यकता है।

 

विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार, विश्वभर में हर छह में से एक व्यक्ति मोटापे से ग्रस्त है और हर तीन में से एक को हाइपरटेंशन है। इस बीमारी की सबसे खतरनाक बात यह है कि यह धीरे-धीरे बिना लक्षणों के बढ़ती है और तब तक पकड़ में नहीं आती जब तक शरीर के महत्वपूर्ण अंगों को नुकसान न हो जाए।

 

*मैक्स सुपर स्पेशलिटी हॉस्पिटल, नोएडा के कार्डिएक सर्जरी विभाग के वाइस चेयरमैन डॉ. मनोज लूथरा ने बताया कि* “ हाइपरटेंशन के जोखिम कारक दो प्रकार के होते हैं – परिवर्तनीय और अपरिवर्तनीय। अपरिवर्तनीय कारकों में उम्र (जैसे-जैसे उम्र बढ़ती है, जोखिम भी बढ़ता है), पारिवारिक इतिहास, लिंग और नस्ल शामिल हैं। दक्षिण एशियाई या अफ्रीकी मूल के लोगों में यह अधिक देखा गया है। पुरुषों में युवा अवस्था में जोखिम अधिक होता है जबकि रजोनिवृत्ति के बाद महिलाओं में इसका खतरा बढ़ जाता है। वहीं परिवर्तनीय कारक वे हैं जिन्हें जीवनशैली में बदलाव से नियंत्रित किया जा सकता है – जैसे मोटापा, शारीरिक निष्क्रियता, अत्यधिक नमक और कम पोटैशियम वाला आहार, धूम्रपान, शराब का अधिक सेवन, पुराना तनाव, और मधुमेह, किडनी रोग तथा नींद से जुड़ी समस्याएं।“

 

हाइपरटेंशन का प्रभावी प्रबंधन जीवनशैली में बदलाव और दवाइयों के समन्वय से किया जा सकता है। सबसे पहले, जीवनशैली सुधार की सिफारिश की जाती है, जिसमें DASH डाइट अपनाना, प्रतिदिन नमक का सेवन 2.3 ग्राम से कम (आदर्शतः 1.5 ग्राम से कम), नियमित व्यायाम, स्वस्थ वजन बनाए रखना (BMI 25 से कम), शराब का सीमित सेवन, धूम्रपान छोड़ना और माइंडफुलनेस या कॉग्निटिव बिहेवियरल थैरेपी जैसी तनाव कम करने वाली तकनीकों को शामिल करना है।

 

*डॉ. मनोज ने आगे बताया कि* “अगर केवल जीवनशैली में बदलाव से रक्तचाप नियंत्रित नहीं होता है, तो दवाओं की आवश्यकता पड़ती है। शुरुआती इलाज में थायाजाइड डाईयूरेटिक्स, ACE इनहिबिटर्स, एंजियोटेंसिन II रिसेप्टर ब्लॉकर्स (ARBs), और कैल्शियम चैनल ब्लॉकर्स का उपयोग किया जाता है। कुछ मामलों में बीटा-ब्लॉकर्स, एल्डोस्टेरोन एंटागोनिस्ट्स और डायरेक्ट रेनिन इनहिबिटर्स जैसी दूसरी श्रेणी की दवाएं भी दी जाती हैं। सामान्यत: लक्ष्य रक्तचाप 140/90 mmHg से कम रखना होता है, जबकि मधुमेह, किडनी रोग या उच्च हृदय जोखिम वाले व्यक्तियों के लिए यह सीमा 130/80 mmHg से कम होती है।“

 

हालांकि भारत में हाइपरटेंशन का प्रचलन बहुत अधिक है, फिर भी लोगों में इसकी जानकारी और नियंत्रण दर अभी भी कम है। लेकिन “इंडिया हाइपरटेंशन कंट्रोल इनिशिएटिव (IHCI)” जैसी राष्ट्रीय पहलकदमियों के जरिए अब रोकथाम और प्रबंधन की दिशा में सकारात्मक बदलाव देखा जा रहा है। इसके प्रभावी नियंत्रण के लिए जन-जागरूकता, नियमित जांच, जीवनशैली में सुधार और उचित चिकित्सा सुविधाओं तक पहुंच को प्राथमिकता देना आवश्यक है, ताकि इस मौन लेकिन घातक बीमारी के दीर्घकालिक प्रभावों को कम किया जा सके।

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