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5 से 16 जून तक चलेगा नमामि गंगे अभियान, एसडीएम मिलिंद ढोके ने ली बैठक, दिए उचित दिशा निर्देश

सुसनेर। जल संरक्षण को लेकर मध्यप्रदेश शासन के द्वारा नमामि गंगे अभियान 5 से 16 जून तक चलाया जाएगा इसको लेकर गत दिवस कलेक्टर द्वारा गठित की गई जनपद स्तरीय समिति की बैठक शनिवार की दोपहर में तहसील रोड स्थित जनपद पंचायत कार्यालय के सभाकक्ष में सुसनेर एसडीएम मिलिंद ढोके ने ली। जो कि उक्त समिति के अध्यक्ष भी है।

उन्होंने प्राकृतिक व कृतिम जल स्त्रोतो जैसे नदी, तालाब, कुए, बावड़ी आदि को सहेजने व जीर्णोद्धार किया जाकर उन्हें उपयोगी बनाने हेतु निर्देश समिति सदस्यों को दिए। इस अवसर पर तहसीलदार विजय सेनानी, जनपद सीईओ राजेश शाक्य, नगर परिषद सीएमओ ओपी नागर व अन्य विभागों के अधिकारी व कर्मचारी उपस्थित रहे। विश्व पर्यावरण दिवस 05 जून से नमामि गंगे अभियान अन्तर्गत जल स्त्रोतों के संरक्षण एवं पुर्नजीवन हेतु विशेष अभियान संचालित होगा। जिसके अन्तर्गत नदी, तालाबों, कुओं, बावड़ियों एवं अन्य जल स्रोतों के संरक्षण एवं इनके पुनर्जीवन के विभिन्न गतिविधियां आयोजित की जाएगी। 

एसडीएम मिलिंद ढोके ने उपस्थित नगरीय एवं ग्रामीण विभागों के अधिकारी, कर्मचारी एवं ग्राम पंचायत सचिवों को सम्बोधित करते हुए बैठक में नमामि गंगे परियोजना अंतर्गत ग्राम पंचायतों एवं नगरीय निकायों में जल स्रोतों के संरक्षण एवं पुनर्जीवन हेतु विशेष अभियान के सुचारू संचालन एवं कैच द रैन अंतर्गत जल संवर्धन के लिए विभिन्न संरचनाओं के निर्माण समयावधि में पूर्ण करवाने एवं सीटीआर के पूर्व वर्षों के कार्यों को पूर्ण करवाने हेतु कार्ययोजना बनाने के लिए आवश्यक दिशा-निर्देश दिए गए। 

एसडीएम ढोके ने कहा कि कलेक्टर राघवेंद्रसिंहजी ने नमामि गंगे परियोजना अंतर्गत निर्देशित किया है कि सभी विभाग दो दिवस में क्षेत्र भ्रमण करते हुए संरक्षण एवं पुर्नजीवन हेतु जल स्त्रोतों को चिन्हांकित कर, 5 जून तक सभी स्वीकृतियां जारी की जाए। कलेक्टर श्री सिंह ने निर्देश दिए कि सभी अधिकारी फील्ड में रहकर इस योजना के अंतर्गत जल संरचनाओं के उन्नयन का कार्य सर्वोच्च प्राथमिकता से करें। सीईओ जनपद अपने स्तर पर जनपद स्तरीय अमले की बैठक लेकर जीर्णाद्धार एवं उन्नयन कार्य हेतु जल संरचनाओं का चिन्हांकन करवाएं। अभियान सामाजिक व अशासकीय संस्थाओं एवं जन अभियान परिषद की सहभागिता से चलाया जाए। इस अभियान में आम नागरिकों को भी जोड़ा जाए। अभियान के दौरान अमृत 2.0 योजनान्तर्गत प्रचलित जल संरचनाओं के उन्नयन का कार्य सर्वोच्च प्राथमिकता से कराया जाये। अमृत 2.0 योजना अंतर्गत नगरीय निकाय में चयनित जल संरचनाओं के अतिरिक्त यदि कोई नदी, तालाब, कुआं, बावड़ी उपलब्ध है, जिसके पुनर्जीवन,  संरक्षण की जरूरत है, तो इनके उन्नयन कार्य स्थानीय सामाजिक एवं जनभागीदारी के माध्यम से कराये जायें। जल संरचनाओं में मिलने वाले गंदे पानी के नाले/नालियों को स्वच्छ भारत मिशन (एसबीएम 2.0) के अंतर्गत लिक्विड वेस्ट मैनेजमेन्ट परियोजना के माध्यम से डायवर्सन के बाद शोधित कर जल संरचनाओं में छोड़ा जाये। जल संरचनाओं के चयन के साथ ही इनके जीर्णोद्धार तथा नवीनीकरण के परिणाम संयोजित उद्देश्यों जैसे – जलप्रदाय, पर्यटन, भू-जल संरक्षण, मत्स्य पालन, सिंघाड़े का उत्पादन आदि भी स्पष्टतः तय कर लिये जायें। जल संरचनाओं के चयन एवं उन्नयन कार्य में जीआईएस तकनीक का उपयोग किया जाये। नगरीय निकाय द्वारा मौके पर जाकर चिन्हित संरचनाओं की मोबाइल एप के जरिये जियो-टैगिंग कराई जाये। इस कार्य के लिये अमृत 2.0 योजना के तकनीकी सलाहकारों की मदद लें।

एसडीएम मिलिंद ढोके ने बैठक में आगे कहा कि जल संरक्षण के जीर्णोद्धार/उन्नयन कार्य में कैचमेन्ट के अतिक्रमण हटाये जायें। कैचमेन्ट के उपचार जैसे- नाले/नालियों की सफाई अथवा इनका डायवर्सन सिल्ट ट्रैप, वृक्षारोपण, स्टार्म वाटर ड्रेनेज मैनेजमेन्ट इत्यादि, बंड विस्तार, वेस्ट वियर सुधार अथवा निर्माण, जल-भराव क्षेत्र में जमा मिट्टी अथवा गाद को निकालना, डि वीडिंग एरेशन, पिचिंग/घाट निर्माण कार्य किये जा सकते हैं। जल संग्रहण संरचनाओं से निकाली गई मिट्टी एवं गाद का उपयोग स्थानीय कृषकों के खेतों में किया जाये। जल संरचनाओं के किनारों पर यथासंभव बफर जोन तैयार किया जाये। इस जोन में हरित क्षेत्र, पार्क का विकास किया जाये। जल संरचनाओं के किनारों पर अतिक्रमण को रोकने के लिये फेंसिंग के रूप में वृक्षारोपण किया जाये तथा इनके संरक्षण के लिये सामाजिक संस्थाओं के सहयोग से जागरूकता अभियान भी चलाया जाये।

जल संरचनाओं के आस-पास किसी भी प्रकार सूखा अथवा गीला कचरा फेंकना सख्ती से प्रतिबंधित किया जाये। प्रतिबंधित गतिविधियों के लिये सूचना पट्टी लगाई जाये। निकाय अंतर्गत पुराने कुएं एवं बावड़ियों की साफ-सफाई/मरम्मत कार्य भी इसी अवधि में कराये जायें। निकाय क्षेत्र अंतर्गत विद्यमान रिहायशी रेन वाटर हार्वेस्टिंग सिस्टम यदि बंद पड़े हैं, तो उनकी सफाई कराकर उन्हें पुनः उपयोग किये जाने के लिये जागरूक किया जाये। जल संरचनाओं की जल गुणवत्ता की जांच कराई जाये। जल संरचनाओं के जीर्णोद्धार/उन्नयन उपरांत वाटर ऑडिट (संरचना की क्षमता वृद्धि के बाद कितना पानी जमा हुआ, कितना वितरित अथवा उपयोग हुआ तथा इसके क्या परिणाम और लाभ प्राप्त हुये) के आधार पर निर्मित संरचना परिणाम से प्राप्त हुए वास्तविक परिणामों का विश्लेषण और सत्यापन भी कराया जाये।

सुसनेर से वंदे भारत से संवाददाता दीपक राठौर की रिपोर्ट 

चित्र 1 : सुसनेर एसडीएम मिलिंद ढोके नमामि गंगे योजना की तैयारियों को लेकर बैठक को सम्बोधित करते हुए।5 से 16 जून तक चलेगा ‘नमामि गंगे अभियान’

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