शाकाहार से प्रकृति के करीब- डॉ कंचन जैन
शाकाहार अपनाने से हम प्रकृति के समीप हो जाते हैं। शाकाहार प्रकृति द्वारा दिए गए आहार से अपने जीवन को स्वस्थ बनाने के लिए दिया गया पोषण है।मनु अपनी स्मृति में लिखते हैं:
अनुमन्ता विरसिता विहंता कायाविक्रयि |
संस्कार चोपर्ता च स्वदकाश्चेति गतकहा ||
‘जो मांस चढ़ाता है, जो काटता है, जो मारता है, जो बेचता है, जो खरीदता है, जो पकाता/तैयार करता है, जो लाता है और जो मांस काटता है, ऐसे सभी लोग हत्यारे हैं।’ अतः केवल मांस खाने से ही परहेज करने की आवश्यकता नहीं है, बल्कि उपरोक्त सभी कार्यों से भी परहेज करने की आवश्यकता है। प्रकृति की प्रत्येक कृति अत्यंत सुंदर है, जिसमें प्रकृति ने मनुष्य को रक्षक के रूप में विवेकशील, बलवान, तेजस्वी बनाया है। प्रकृति का प्रत्येक अंश अत्यंत महत्वपूर्ण एवं सजीव है। स्वाद के लिए पशु पक्षियों की निर्मम हत्या कर देना,प्रकृति के विरुद्ध जाना है। प्रकृति ने मनुष्य को स्वस्थ रहने के लिए फल दिए हैं, फूल दिया है, जल दिया है। मनुष्य अपने लालच में अंधा होकर अपनी जिव्हा के स्वाद के लिए कभी फल फूल देने वाले वृक्षों को काटता है तो कभी पशुओं को। इसे वह अपना अधिकार समझता है। यही कारण है कि मनुष्य अनेक रोगों से ग्रसित होकर प्रकृति की शरण में जाता है।