दंतेवाड़ा, 21 फरवरी 2024। कुक्कुट पालन आजीविका संवर्धन इकाई का सर्वाधिक लोकप्रिय कार्यक्षेत्र रहा है। कारण है कि कुक्कुट पालन सीमित लागत खर्च, मेहनत, और किसी भी परिवेश में सरलता से प्रारंभ किया जा सकता है। इसके अलावा चूजे, मुर्गे मुर्गियों एवं अंडे की मांग हाट बाजारों में सदैव बनी रहती है। अगर कुक्कुट पालन को उन्नत एवं व्यवस्थित रूप दिया जाना हो तो कुक्कुटों के लिए दाना, पानी की समुचित व्यवस्था प्रबंध, टीकाकरण, उपचार एवं उनके रखने के लिए विशेष स्थान चयन एक महत्वपूर्ण घटक होता है। इस प्रकार कुक्कुट पालन में इन सब बातों का ध्यान रखा जाए तो एक ग्रामीण परिवार इस व्यवसाय के माध्यम से अपने जीवन स्तर में सुधार ला सकता है। इसी प्रकार अपने जीवन स्तर में बदलाव लाने का श्रेय ग्राम पंचायत गढ़मिरी की निवासी श्रीमती भूमे बाई कुक्कुट पालन को देती है उनका कहना था कि कृषि में पर्याप्त आमदनी नहीं होने के कारण वे आय के अन्य साधन की खोज में थी। शुरूआत में परिवारजनों के साथ उसने मुर्गी पालन करने के संबंध में विचार किया, परन्तु मुर्गियों को व्यवस्थित एवं सुरक्षित रखने के लिए उनके पास झोपड़ी नूमा छोटी सी कोठरी ही थी। तबतक ’शेड’ जैसी किसी विशेष कमरे का उसको ध्यान नही था।
इसी दौरान उन्हे ग्राम पंचायत के माध्यम से ज्ञात हुआ की मनरेगा योजना अंतर्गत पात्र स्वयं सहायता समूह के सदस्य महिलाओं को मुर्गी पालन हेतु शेड बनाकर दिया जा रहा है। इसपर भूमें बाई के द्वारा इस संबंध में पंचायत के कर्मचारियों से संपर्क कर जानकारी ली गई एवं कार्य स्वीकृति हेतु आवश्यक दस्तावेज ग्राम पंचायत को दिया गया। दस्तावेज उपलब्ध होने के कुछ ही दिनों में कार्य की प्रशासकीय स्वीकृति मिल गई और मुर्गी शेड निर्माण कार्य प्रारंभ किया गया और प्रशासनिक अधिकारी एवं कर्मचारियों की देखरेख में मुर्गी शेड अति शीघ्र बन कर तैयार हो गया। जैसा कि प्रारंभ में ही स्पष्ट है कि वर्तमान समय में मुर्गी पालन को यदि उचित तरीके से उचित देखरेख में किया जाए तो ये अत्यंत लाभकर व्यवसाय बन जाता है, फलस्वरूप श्रीमती भूमें को भी इसका लाभ बहुत जल्द ही मिलना शुरू हुआ। उन्होंने तैयार हुए मुर्गी शेड में मुर्गी पालन का कार्य शुरू किया। जिसके लिए उन्हें जिला प्रशासन के तरफ से लेयर बर्ड प्रदाय किया गया। जो मुख्य तौर पर अंडे उत्पादन के लिए थी। इस प्रकार उनके पास अब तकरीबन 40 से 50 मुर्गे मुर्गियां है, जिनको बेच कर उन्हें लगभग 5500 रूपये प्रतिमाह आय हो जाती है। साथ ही मुर्गियों से उन्हें अंडे भी प्राप्त होते है जिसे वे स्थानीय हाट बाजारों में विक्रय कर देती है। अपने जीवन में आये इस सुखद बदलाव के लिए भूमे बाई ने जनपद पंचायत कुआकोंडा एवं जिला प्रशासन को साधुवाद भी दिया है। कुल मिला कर मनरेगा जैसी शासकीय योजना से लाभान्वित होकर आज गावं-गावं में भूमे बाई जैसे हितग्राही आजीविका का नया साधन पा कर आर्थिक सशक्तिकरण की नई इबारत लिख रहे है।
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