बिहार क्रिकेट संघ में बिहार विभाजन के बाद से ही वर्चस्व की लड़ाई कायम है।राज्य विभाजन के बाद और बिहार क्रिकेट टीम के विभाजन व झारखंड राज्य क्रिकेट संघ को बीसीसीआई की ओर से सदस्यता मिलने के बाद से विवाद और गहरा होता चला गया था।बिहार क्रिकेट संघ के अलावे भी बिहार में दो क्रिकेट संघ मान्यता के लिए समय -समय पर दावा ठोकते रहे। बीसीसीआई ने साल 2008 में बिहार क्रिकेट संघ को ही अंततः एसोसिएट सदस्यता प्रदान की।फिर जब 2018 में बीसीसीआई के द्वारा बिहार क्रिकेट संघ को पूर्ण सदस्यता सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर दी गयी उस समय से अब तक बिहार क्रिकेट संघ में दो -दो गुटों में हमेशा टीम चयन व अनेक मुद्दे पर विवाद होता रहता है।कभी अध्यक्ष महोदय सचिव महोदय को प्रतिबंधत करते हैं तो कभी सचिव महोदय अध्यक्ष महोदय का। संघ के अधिकारी न तो कोर्ट के आदेश का पालन करते हैं न ही बीसीसीआई इन लोगों पर कोई कार्रवाई करती है। एक ही पद पे बीसीसीआई के संविधान के खिलाफ कुछ अधिकारी 4 वर्ष से अधिक समय से काबिज हैं। न ही समय पर अंतरजिला मैंचों का आयोजन होता है न ही टीम में चयन का कोई आधार है।आखिर इन सब मामले को बीसीसीआई निबटाती क्यो नहीं है?
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