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अपनी किताबों के साथ विश्व पुस्तक मेले नई दिल्ली में शिरकत करेंगे खंडवा के विनय उपाध्याय,

अपनी किताबों के साथ विश्व पुस्तक मेले नई दिल्ली में शिरकत करेंगे खंडवा के विनय उपाध्याय,

पुस्तक मेले दिल्ली में श्री उपाध्याय की ,,कुछ दस्तके कुछ दस्तखत,, पुस्तक का होगा लोकार्पण,

खंडवा ।। कला समीक्षक, सम्पादक तथा उद्‌घोषक विनय उपाध्याय की महत्वपूर्ण लेखकीय उपस्थिति नई दिल्ली में आयोजित विश्व पुस्तक मेले में होने जा रही है। भारत सरकार के अधीन संचालित नेशनल बुक ट्रस्ट द्वारा 1 फरवरी से 9 फरवरी के बीच यह विशाल आयोजन होगा। यहाँ विनय उपाध्याय द्वारा रचित और संपादित एक दर्जन से भी अधिक किताबें उपलब्ध रहेंगी। हाल ही विनय की नई पुस्तक ‘कुछ दस्तकें, कुछ दस्तख़त’ प्रकाशित हुई है। इस कृति का लोकार्पण भी पुस्तक मेले के हॉल नंबर-दो, स्टॉल नंबर- एन-7 में होगा। संपूर्ण निमाड़ के लिए यह एक और बड़ी बौद्धिक उपलब्धि है, समाजसेवी व प्रवक्ता सुनील जैन ने बताया कि
आईसेक्ट प्रकाशन से छपी खंडवा के विनय उपाध्याय की ये किताबें कला, संस्कृति, साहित्य की विधाओं और विभूतियों से नया परिचय कराते हुए आस्वाद तथा रसिकता का परिवेश तैयार करती हैं। साहित्य अकादेमी द्वारा पुरस्कृत किताब ‘सफ़ह पर आवाज़’ तथा ‘कला की छाँव’ को पाठकों से मिले बेहतर प्रतिसाद के बाद संस्कृति और कलाओं पर केन्द्रित अनेक महत्वपूर्ण प्रकल्पों में इन दिनों विनय उपाध्याय सक्रिय हैं। वे टैगोर विश्व कला एवं संस्कृति केन्द्र के निदेशक और सांस्कृतिक पत्रिका ‘रंग संवाद’ के संपादक हैं। उन्हें राष्ट्रीय और प्रादेशिक सम्मानों से विभूषित किया गया है।
उल्लेखनीय है कि नई दिल्ली के प्रगति मैदान में हो रहे किताबों के वैश्विक कुंभ में भारत के अग्रणी प्रकाशकों के साथ ही अन्य देशों के बहुभाषी प्रकाशन संस्थानों की व्यापक भागीदारी हो रही है।

*क्या है विनय उपाध्याय की तीसरी किताब का मजमून*

सुनील जैन ने बताया कि कला समीक्षक विनय उपाध्याय की तीसरी और नई पुस्तक ‘कुछ दस्तकें, कुछ दस्तख़त’ हमारे समय के विचारजगत और सांस्कृतिक संसार से साक्षात्कार तो कराती है। इस पुस्तक में 50 मूर्धन्य कला विभूतियों का लेखा-जोखा हैं। इन शख़्सियतों में निमाड़ क्षेत्र के रंगकर्मी शिवकुमार चौरे, शिल्पकार देवीलाल पाटीदार, चित्रकार ब्रजेश बडोले, लोक नर्तक संजय महाजन, संस्कृतिकर्मी शरद जैन तथा लेखक-सामाजिक उद्यमी आलोक सेठी के रचनात्मक की भी चर्चा हैं। यह किताब बेहतर बनने की या बन सकने की लालसा लिए भारत की लोक संस्कृति के लालित्य का सुन्दर रूपक रचती हैं। पाठक को यह किताब अलग दुनिया में ले जाती हुई, उसे संस्कृति का अनूठा पाठ-सुख प्रदान करती है।

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