
मयूर सोनी की कलम से✍ वंदे भारत लाइव टीवी न्यूज़
कोटा का कंसुआ स्थित शिव मंदिर आठवीं शताब्दी का है, यह काव्य ऋषि की तपोस्थली कहा जाता है, कंसुआ के शिव मंदिर में प्रवेश करने के साथ ही अंदर से शिवालय की दीवार पर उत्कीर्ण शिलालेख में इस मंदिर का निर्माण विक्रम संवत 795( ई 738) मैं ब्राह्मण शासक शिवगढ़ द्वारा करने का उल्लेख है, यह मौर्य वंशी राजा धवल के अधीन शासक था, शिव को विभिन्न रूपों में दर्शाने वाला अद्भुत शिवलिंग मंदिर के गर्भ गृह व मंडप के सामने अपेक्षित सा है, सृष्टि के पांच भूतों के प्रति के रूप में से पंचमुखी शिवलिंग कहते हैं, कोटा नगर का प्राचीनतम प्रस्तर अभिलेख कंसुआ के शिव मंदिर में लगा हुआ है, इस पर लिखा है कि ब्राह्मण वंशीय राजा शिवगंगा के काव्यश्रम वर्तमान का कंसुआ मैं एक शिव मंदिर का निर्माण करवाया था, राजा शिवगन के पिता का नाम स्कुक था, जो मौर्य वंशी राजा धवल का मित्र था, एक इस लेख से ज्ञात होता है कि ईशा की आठवीं शताब्दी में कोटा प्रदेश पर ब्राह्मण वंश राजा राज करते थे, इस समय जनसाधारण की भाषा संस्कृत थी, राजस्थान में पाए जाने वाले उत्कीन लिखो में यह अंतिम लेख है, जिसमें मौर्य वंशी का वर्णन है, यह कोटा शहर का उसे समय का सबसे बड़ा मंदिर था, औद्योगिक क्षेत्र में निर्माण से पूर्व यहां एक झरना बहता था, इस मंदिर को सेंट्रल आर्कियोलॉजिकल सर्वे आफ इंडिया ने प्राचीन स्मारक एवं पुरातत्व स्थल अवशेष अधिनियम 1958 एक तहत राष्ट्रीय महत्व का घोषित किया जाता है, कोटा के राजा राव किशन सिंह प्रथम ने इस मंदिर का जीणोद्धार कराया था, चट्टानों को काटकर बनाया गया कनेश्वर मंदिर उसे समय का सुरम्य प्राकृतिक स्थल था, इस स्थान को सूर्यवंशी सम्राट दुष्यंत तथा अप्सरा मेनका की रूपवती कन्या शकुंतला की पणय और परिणिय स्थल भी कहां जाता है, यहीं पर शकुंतला के पुत्र भरत का लालन पालन हुआ था, समय बीतने के साथ काव्य आश्रम का नाम कसुआ कनेश्वर महादेव हो गया, मंदिर के बाहर स्थापित चतुर्मुखी शिवलिंग, सहस्त्र शिवलिंग (जिसमें 1000 शिवलिंग है), यह यहां का प्रमुख आकर्षण है इसके अलावा कई छोटे-छोटे शिवलिंग है यहां लगे पत्थरों में शिव परिवार उत्कीन है, जिनमें से कुछ खंडित भी हो चुके हैं, मंदिर में पूर्वाभिमुख प्राचीन शिवालय हैं यहां करीब 22 शिवलिंग है, पांच शिवलिंग तो ऐसे हैं जो पंचमुखी है मंदिर की बनावट इस प्रकार की है कि सूर्य उदय होते ही पहले किरण मुख्य शिवलिंग पर पड़ती है, हर सोमवार को यहां बड़ी संख्या में शिव भक्त दर्शन के लिए आते हैं, इस देश को भारत वर्ष का नाम दिलवाने वाले भरत जैसे प्रतापी सम्राट ने यहां जन्म लेकर इस स्थल को अलंकृत किया