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बड़ागांव की गणगौर: तीन सौ साल पुरानी परंपरा,

जानिए क्यों है यह मेला खास

राजस्थान का लोकपर्व गणगौर पूरे प्रदेश में धूमधाम से मनाया जाता है, लेकिन शेखावाटी के झुंझुनूं जिले के बड़ागांव में इस पर्व की अलग ही छटा देखने को मिलती है। यहां बीते तीन सौ वर्षों से गणगौर मेले का आयोजन हो रहा है। इस मेले की सबसे खास बात यह है कि जहां अन्य जगहों पर अकेली गणगौर की सवारी निकलती है, वहीं बड़ागांव में सबसे पहले ईशर की सवारी निकलती है और उसके बाद सजी-धजी गणगौरों की भव्य झांकी निकाली जाती हैं।

ईशर की सवारी की होती है एक साल पहले बुकिंग
बड़ागांव में गणगौर मेले की एक अनूठी परंपरा यह है कि ईशर की सवारी निकालने के लिए एक साल पहले से बुकिंग करनी पड़ती है। गांव के एक घर से ईशर की सवारी निकलती है, जबकि जितने घरों में महिलाओं ने गणगौर का उद्यापन (उजीणा) किया होता है, उतनी ही गणगौर सवारी में शामिल होती हैं। वर्ष 2016-17 में इस मेले में एक साथ 27 गणगौर निकली थीं। आमतौर पर हर साल पांच से पंद्रह गणगौर मेले में शामिल होती हैं।

पीहर पक्ष निभाता है खास परंपरा
इस अनूठे मेले में महिलाओं के पीहर पक्ष की अहम भूमिका होती है। गणगौर के दिन महिलाओं के मायके वाले अपनी बहनों और उनके ससुराल पक्ष के लोगों के लिए वस्त्र व उपहार लेकर आते हैं। इस अवसर पर पूरे गांव में उत्सव का माहौल रहता है और जितने घरों से गणगौर निकलती हैं, वहां भव्य जीमण (भोजन) का आयोजन किया जाता हैं।

गोपीनाथ मंदिर से शुरू होती है यात्रा
गांव के प्रत्येक घर से निकाली गई गणगौर की सवारी सबसे पहले गोपीनाथ मंदिर में एकत्र होती है। यहां से बैंड-बाजों के साथ गणगौर की शोभायात्रा निकाली जाती है। यह सवारी गांव के मुख्य मार्गों से होते हुए मेले के मैदान तक पहुंचती है।

गणगौर विदाई का भावुक क्षण
शाम करीब सवा तीन बजे गणगौर की सवारी निकाली जाती है। मेले में आने वाली पूजनीय गणगौर को महिलाएं आसुओं के साथ गांव के कुएं में विसर्जित कर आती हैं। वहीं, बड़ी गणगौर को वापस लाया जाता है। ईशर की सवारी सबसे अंत में लौटती है। इस दौरान अगले वर्ष की ईशर सवारी के लिए बुकिंग की प्रक्रिया भी पूरी कर ली जाती हैं।

सामूहिक रूप से होता है खर्चा
गणगौर मेले में सवारी से लेकर अन्य तैयारियों तक का खर्चा सामूहिक रूप से वहन किया जाता है। यह आयोजन पूरी तरह से गांववासियों के सहयोग और भागीदारी से संपन्न होता हैं।

शृंगार करने वाले होते हैं अनुभवी कलाकार
गणगौर का शृंगार महिलाएं स्वयं करती हैं, जबकि ईशर का शृंगार पुरुषों द्वारा किया जाता है। वर्षों से ईशर की सवारी को सजाने वाले उम्मेद सिंह बताते हैं कि इस शृंगार की विधि पीढ़ी दर पीढ़ी चली आ रही है। गांव के महिपाल सिंह और आजाद सिंह ने बताया कि मेले का आयोजन रात आठ बजे तक चलता है। इस मेले में बड़ागांव के अलावा हांसलसर, हमीरवास, दोरासर, चारण की ढाणी, मालसर, बजावा और झुंझुनूं से भी बड़ी संख्या में लोग शामिल होते हैं।

तीन सौ साल पुरानी परंपरा का अनूठा संगम
बड़ागांव का गणगौर मेला सिर्फ धार्मिक आस्था का प्रतीक ही नहीं, बल्कि सांस्कृतिक धरोहर का एक अनमोल हिस्सा भी है। इस आयोजन में हर साल हजारों की संख्या में श्रद्धालु शामिल होते हैं, जिससे यह मेला संपूर्ण शेखावाटी क्षेत्र के लिए गौरव का विषय बन गया हैं।

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