
किसानों से खेतों में नरवाई न जलाने की अपील
नरवाई प्रबंधन के उपाय भी बताये
📝🎯 खरगोन से अनिल बिलवे की रिपोर्ट…
किसान कल्याण तथा कृषि विकास विभाग ने जिले के किसानों से खेतों में नरवाई (पराली) न जलाने की अपील की है। अपील में किसानों को बताया गया है कि नरवाई जलाने से जमीन में पोषक तत्व बचाने वाले सूक्ष्म जीवाणु अथवा लाभकारी कीट मर जाते हैं। इस वजह से भूमि की उर्वरा शक्ति कम हो जाती है और उत्पादन प्रभावित होता है। नरवाई जलाने से पशु पक्षियों को भी नुकसान पहुंचता है और मेढ़ों पर लगे हरे भरे पेड़ आग से झुलस जाते हैं। नरवाई जलाने से हानिकारक गैस का उत्सर्जन होता है, इस वजह से वातावरण प्रदूषित होता है तथा पर्यावरण को नुकसान पहुंचता है।
किसान कल्याण तथा कृषि विकास विभाग के मुताबिक नरवाई जलाने से पशुओं को पर्याप्त मात्रा में आहार न मिलने से वे भूखे रह जाते हैं और पॉलीथिन खाते हैं। इस वजह से पशुओं का जीवन संकट में पड़ जाता है और यहां तक की उनकी मृत्यु हो सकती है, जबकि फसल कटाई के कुछ माह बाद यही नरवाई दोगुनी कीमत में बेचकर अतिरिक्त लाभ अर्जित किया जा सकता है। इसका इस्तेमाल पैकिंग कार्य में अथवा घरेलू ईंधन के रूप में भी किया जा सकता है।
किसान कल्याण एवं कृषि विकास के अनुसार खेतों में नरवाई या पराली जलाने से मिट्टी की उर्वरा क्षमता कम होती है और इससे उत्पादन प्रभावित होता है। नरवाई में लगाई गई आग के अनियंत्रित होने की आशंका भी हमेशा बनी रहती है। इसके कारण कई गंभीर अग्नि दुर्घटनाएं भी घटित हो चुकी हैं, जिससे सम्पत्ति का भी बड़े स्तर पर नुकसान हुआ है। ग्रीष्म ऋतु में जल संकट उत्पन्न होने का भी यह एक महत्वपूर्ण कारण है।
किसान कल्याण तथा कृषि विकास विभाग ने किसानों को नरवाई जलाने की अपेक्षा इसके प्रबंधन के उपाय भी सुझाये गये है। विभाग के अनुसार रोटावेटर आदि यंत्रों का उपयोग कर नरवाई को मिट्टी में मिला देना चाहिए। मिट्टी में मिलाने से फसल अवशेष सड़कर कार्बनिक पदार्थ में बदल जाते हैं और इससे मिट्टी की उर्वरा शक्ति बढ़ती है।
किसान कल्याण तथा कृषि विकास विभाग ने फसल कटाई में कम्बाइंड हार्वेस्टर के साथ स्ट्रा रीपर यंत्र (भूसा बनाने की मशीन) का उपयोग करने की सलाह भी किसानों को दी है। किसानों को बताया गया है कि कम्बाइंड हार्वेस्टर के साथ स्ट्रा रीपर यंत्र के इस्तेमाल से बने भूसे का उपयोग मवेशियों के आहार के रूप में काम आयेगा। अधिक भूसा बनने पर उसे निराश्रित गौवंश के लिये गौशालाओं को दान भी किया जा सकता है। भू-नाडेप, वर्मी कम्पोस्ट जैसी जैविक खाद बनाने में भी नरवाई का उपयोग किया जा सकता है।