
भीषण गर्मी में भगवान श्री महाकालेश्वर जी को दो माह तक प्रतिदिन भस्मार्ती के पश्यात प्रातः 6 बजे से सायं 05 बजे संध्या पूजन तक गलंतिका बधेगी।
धार्मिक मान्यता के अनुसार समुद्र मंथन के समय भगवान शिव ने गरल (विष) पान किया था। गरल अग्नि शमन करने के लिए ही आदिदेव सदाशिव का जलाभिषेक किया जाता है। गर्मी के दिनों में विष की उष्णता (गर्मी) और भी बढ़ जाती है। इसलिए वैशाख व ज्येष्ठ मास में भगवान को शीतलता प्रदान करने के लिए मिट्टी के कलश से ठंडे पानी की जलधारा प्रवाहित की जाती है। जिसको गलंतिका कहते हैं।
धर्म-सिंन्धु पुस्तक के अनुसार *”अत्र मासे प्रपादान देवे गलंतिका बंधन व्यजनच्छत्रोपान वंदनादिदान महाफलम”* अर्थात इस मास में प्रपाका दान (जलदान) पशु-पक्षी,देवताओं,ऋषियों,मनुष्यों को जलसेवा करनी चाहिए, देव के गलंतिका(कंठी) बांधना और बीजना(बोवाई) छत्र,चन्दन, धान्य आदि के दान का महान फल होता है। वैशाख एवं ज्येष्ठ माह तपन के माह होते है। भगवान शिव के रूद्र एवं नीलकंठ स्वरूप को देखते हुए सतत शीतल जल के माध्यम से जलधारा प्रवाहित करने से भगवान शिव प्रसन्न एवं तृप्त होते है तथा प्रजा एवं राष्ट्र को भी सुख समृद्धि प्रदान करते है।
गलंतिका केवल श्री महाकालेश्वर मंदिर में ही नही अपितु 84 महादेव एवं संपूर्ण भारतवर्ष में भी लगायी जाती है। trilok news