
आज विक्रम संवत एवं चैत्र नवरात्र के शुभांरभ अवसर पर राजा विक्रमादित्य सूर्य उपासना कार्यक्रम संपन्न
डिंडौरी : 30मार्च, 2025
आज रविवार को जिला प्रशासन के द्वारा कलेक्ट्रेट प्रांगण ऑडिटरोयिम सभा कक्ष में विक्रामोत्सव 2025 के अंतर्गत सूर्य उपासना कार्यक्रम का आयोजन किया गया। कार्यक्रम में मुख्य अतिथि जिला पंचायत अध्यक्ष रूद्रेश परस्ते, जनपद अध्यक्ष डिंडोरी आशा सिंह, बीजेपी अध्यक्ष चमरू सिंह नेताम, सांसद प्रतिनिधि नरेन्द्र राजपूत, पूर्व अध्यक्ष अवध राज बिलैया, महामंत्री पंकज तेकाम, जिला पंचायत सदस्य हीरा परस्ते, मुख्य कार्यपालन अधिकारी अनिल कुमार, अपर कलेक्टर सुनील शुक्ला, नोडल अधिकारी रति सिंह, कार्यक्रम के समन्वयक विनोद कांशकार, रामजीवन वर्मा, आशीष पांडे, आनंद मोर्य, रामरतन मार्को, आदि अधिकारी कर्मचारी उपस्थित रहे। मंच संचालन श्री संजय तिवारी, श्रीमती शिखा सिंह ठाकुर के द्वारा सफलतापूर्वक किया गया। सूर्य उपासना कार्यक्रम का शुभारंभ विक्रमादित्य के छायाचित्र पर मार्ल्यापण एवं ब्रहम ध्वज फहराते हुए सम्राट विक्रमादित्य नाटय् का मंचन नाटय् दल श्री दुर्गेश सोनी दर्पण रंग समिति, जबलपुर के कलाकारों द्वारा मनमोहक प्रस्तुति दी गई। आज हिन्दु रीति-रिवाज के अनुसार विक्रम संवत एवं चैत्र नवरात्रि का पर्व बहुत बड़ा त्यौहार है, जो 9 दिन तक गांव, शहर एवं जिला मुख्यालय में हर्षोल्लास के साथ मनाया जायेगा।
भारतवर्ष को विदेशी आक्रांताओं से मुक्त कराने वाले उज्जयिनी के प्रतापी राजा सम्राट विक्रमादित्य की महाविजय और राष्ट्र गौरव की पुनस्थापना का कालजयी अभिनंदन है। जो हमें एक नई ऊर्जा और आत्मविश्वास से भर देता है। यह बेमिसाल ताकत उस विक्रम संवत की है, जिसे महाकाल की नगरी उज्जयिनी के पराक्रमी राजा सम्राट विक्रमादित्य ने विदेशी आक्रांता शको को देश की सीमाओं से खदेडकर निर्णायक रूप से विजय को शाश्वत करने के उपलक्ष्य में 57 ईसा पूर्व चलाया गया।
लोक समाज इतिहास को अपने ढंग से संजोता और संरक्षित करता है। आज भी हमारे सभी तीज त्यौहार संस्कार व ज्योतिष गणनाएं ज्यादातर विक्रम सम्वत् के हिसाब से ही होती हैं, आज भी विक्रम संवत सर्वमान्य है। विक्रम संवत भारत के अनेक संवतों में सर्वाधिक जीवनी शक्ति के रूप में उपस्थित रहा और आज भी प्रयोग में है। समूचे उत्तर भारत में तो यह जन्म से लेकर अंत तक प्रयुक्त होता है। यह सम्वत् चंद्रमा पर आधारित है। विक्रम सम्वत् को पहले कृत सम्बत् के नाम से जाना जाता था। कुछ शिलालेखों में मालवगण का सम्वत् उल्लिखित है,जैसे नरवर्मा का मंदसौर शिलालेख, इसमें श्कृतश् एवं श्मालवश् सम्वत् एक ही कहे गये हैं।
राजस्थान के बरनाला में मिले एक प्राचीन शिलालेख में विक्रम सम्वत् का उल्लेख है। भारत में मुस्लिम शासकों के सत्ता पर काबिज होने तक देश में मुख्य रूप से विक्रम और शक सम्वत् ही प्रचलन में थे। बौद्ध साहित्य में भी इसका उल्लेख मिलता है।
विक्रम संवत् का आरंभ गुजरात में कार्तिक शुक्ल प्रतिपदा से और उत्तर भारत में चैत्र शुक्ल प्रतिपदा से माना जाता है। मान्यता है कि वर्ष में 12 माह और 7 दिन का एक सप्ताह मान्य करने का प्रारंभ विक्रम सम्वत् से ही हुआ। महीने का हिसाब सूर्य व चंद्रमा की गति पर आधारित है। ये बारह राशियों ही 12 सौर मास हैं। जिस दिन सूर्य जिस राशि में प्रवेश करता है उसी दिन संक्रांति होती है। पूर्णिमा के दिन चन्द्रमा जिस नक्षत्र में होता है, उसी आधार पर महीनों का नामकरण हुआ है। चंद्र वर्ष सौर वर्ष से 11 दिन 3 घटी 48 पल छोटा हैए इसीलिए प्रत्येक 3 वर्ष में इसमें 1 महीना जोड दिया जाता है। जिसे अधिक मास कहते है। जिस दिन नव सम्वत् का आरम्भ होता है, उस दिन के वार के अनुसार वर्ष के राजा का निर्धारण होता है। विक्रम सम्वत् भारतीय संस्कृति विज्ञान और परंपरा का परिचायक है।