वात्सल्य और श्रृंगार के अद्वितीय कवि, सूरदास जी-शिवानी जैन एडवोकेट
ऑल ह्यूमन सेव एंड फॉरेंसिक फाउंडेशन डिस्टिक वूमेन चीफ शिवानी जैन एडवोकेट ने कहा कि
भगवान श्रीकृष्ण के परम भक्त संत सूरदास की जयंती है। सूरदास का जन्म जन्म1478 ई में रुनकत गांव में हुआ था। सूरदास के पिता का नाम रामदास थे। सूरदास के जन्म को लेकर अलग-अलग मत हैं। सूरदास जन्म से अंधे थे। हिंदू पंचांग के अनुसार वैशाख शुक्ल पंचमी को सूरदास जी की जयंती मनाई जाती है। जब सूरदास की मुलाकात वल्लभाचार्य से हुई वह उनके शिष्य बन गए इसके बाद पुष्टिमार्ग की दीक्षा प्राप्त करके कृष्णलीला में रम गए।
मां सरस्वती शिक्षा समिति के प्रबंधक डॉ एच सी विपिन कुमार जैन, संरक्षक आलोक मित्तल एडवोकेट, ज्ञानेंद्र चौधरी एडवोकेट, बृजेश शुक्ला एडवोकेट, डॉ आरके शर्मा, निदेशक डॉक्टर नरेंद्र चौधरी, शार्क फाउंडेशन की तहसील प्रभारी डॉ एच सी अंजू लता जी, थिंक मानवाधिकार संगठन एडवाइजरी बोर्ड नंबर डां कंचन जैन, एडवोकेट बीना आदि ने कहा कि कहा जाता है कि वे जन्मांध थे किन्तु उनकी कविता में प्रकृति तथा दृश्य जगत की अन्य वस्तुओं का इतना सूक्ष्म और अनुभवपूर्ण चित्रण मिलता है कि उनके जन्मांध होने पर विश्वास नहीं होता। इसी तरह उन्हें सारस्वत ब्राह्मण बताया जाता है।
स्नेह , वात्सल्य, ममता और प्रेम के जितने भी रूप मानवीय जीवन में मिलते हैं, लगभग सभी का समावेश किसी न किसी रूप में सूरसागर में प्राप्त हो जाता है। सागर की तरह विस्तार और गहराई दोनों ही विशेषताएं सूर के काव्य में मिलती हैं। अतः उनकी रचना के साथ यह नाम उचित रूप से ही संबद्ध हुआ है। भावों की सूक्ष्म विविधता और अनेकरूपता तक उनकी सहज गति थी, यह सूरसागर के कृष्ण की लीलाओं के चित्रण को देखने से स्पष्ट हो जाता है। वात्सल्य और श्रृंगार के वे अद्वितीय कवि कहे जा सकते हैं।
शिवानी जैन एडवोकेट
डिस्ट्रिक्ट वूमेन चीफ