
मुख्यमंत्री मोहन यादव और उपमुख्यमंत्री राजेंद्र शुक्ल के बीच समन्वय की कमी?
मध्य प्रदेश में मुख्यमंत्री मोहन यादव, जो स्वयं गृह मंत्री भी हैं, और उपमुख्यमंत्री राजेंद्र शुक्ल के बीच समन्वय की कमी स्पष्ट रूप से देखी जा रही है, जिसका सीधा असर प्रदेश की प्रशासनिक और स्वास्थ्य सेवाओं पर पड़ रहा है।
इसका एक ज्वलंत उदाहरण है पुलिसकर्मियों और उनके परिवारों के लिए संचालित 70 अस्पतालों की दयनीय स्थिति।
इन 70 अस्पतालों में से केवल 17 में ही एक-एक डॉक्टर मौजूद हैं, जबकि शेष 53 अस्पतालों में न तो कोई डॉक्टर है और न ही पर्याप्त पैरामेडिकल स्टाफ।
कई अस्पतालों में बुनियादी चिकित्सा सुविधाएं तक उपलब्ध नहीं हैं, और स्थिति को और गंभीर बनाता है यह तथ्य कि मौजूदा स्टाफ में से कई जल्द ही सेवानिवृत्त होने वाले हैं।
प्रदेश के लगभग 1.20 लाख पुलिसकर्मियों और उनके 5-6 लाख परिजनों की स्वास्थ्य सेवाएं इन्हीं अस्पतालों पर निर्भर हैं।
यदि पुलिसकर्मियों के लिए बने अस्पतालों की यह हालत है, तो आम जनता के लिए सरकारी अस्पतालों की स्थिति कितनी बदतर होगी, इसका सहज ही अनुमान लगाया जा सकता है।
पुलिस विभाग का कहना है कि पिछले पांच वर्षों में स्वास्थ्य विभाग को डॉक्टरों की नियुक्ति के लिए कई पत्र लिखे गए हैं, लेकिन कोई ठोस कार्रवाई नहीं हुई।
प्रदेश में पहले से ही लगभग 5,000 डॉक्टरों की कमी है, और इसके बावजूद डॉक्टरों की भर्ती नीति में कोई सुधार या बदलाव नहीं किया जा रहा है, जिससे यह संकट और गहराता जा रहा है।
चूंकि गृह मंत्रालय मुख्यमंत्री के पास है और स्वास्थ्य विभाग उपमुख्यमंत्री के अधीन है, दोनों विभागों के बीच समन्वय का अभाव इस समस्या का मूल कारण प्रतीत होता है।
इस असमंजस का खामियाजा न केवल पुलिसकर्मियों और उनके परिवारों को भुगतना पड़ रहा है, बल्कि यह प्रदेश की समग्र स्वास्थ्य सेवाओं की गुणवत्ता पर भी सवाल उठाता है।
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Dr Mohan Yadav Rajendra Shukla