चौगान का किला नरसिंहपुर जिले की गाडरवारा तहसील मैं चौगान ग्राम के पास सतपुडा पर्वत की चौरागढ़ नामक चोटी पर है यह 20.35 latitude 79.55 longitude पर स्थित है गाडरवारा तहसील मुख्यालय से लगभग 35 किलोमीटर दूरी पर बना यह दुर्ग पूर्वाभिमुख है इस पूर्व की दीवारें एवं महल गढी हुई प्रकार शिलाओं ,अनगढ छोटे बडे प्रस्तकारों से चुना के गाढ़े की जुड़ाई द्वारा बने हैं।
पहाड़ी के ऊपर एक परकोटा बना है इस किले में तीन द्वार लांघ कर पहुंचते हैं ।किला के अंदर एक तालाब है जिसे रेवाकुंड कहा जाता है इसके ही समीप एक प्राचीन पिरामिड शिखर वा मंदिर है इसमें
गर्भग्रह में नरसिंह की एक खंडित मूर्ति (सिर एवं धर अलग-अलग है) रखी है जो निश्चित रूप से गोंडकाल (दुर्ग निर्माण काल) से पहले की मालूम पड़ती है । किले के भीतर अन्य दूसरे महत्वपूर्ण स्थान है रंगमहल एंव गोंड राजा प्रेम नारायण शाह का महल जिसके सामने खुले मंडप के (दरवार बाल) के अवशेष है रानीताल एंव रानीमहल के बीच में मराठा-काल में निर्मित भवनों के चिन्ह भी मौजूद हैं जिनकी सीमा के अंदर प्रत्येक घर में बनाए गए वर्गाकार सीढ़ीदार कुएं अभी भी हैं सन 1816 ईस्वी में इस किले को अंग्रेज ने तोड दिया तभी से निरजंन हो गया और वर्तमान में इस में जंगल खड़ा है गौंड एवं मराठा राजाओं के समय में यह दुर्ग महल महत्वपूर्ण था चौरागढ़ दुर्ग अथवा चौगान के इस किले का निर्माण 16 वीं ईश्वी में पराक्रमी गौंड शासक संग्रामशाह ने कराया था वर्तमान में यह वन विभाग के अधीन है
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