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महिला थाने में दलालों का बोलबाला*

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*महिला थाने में दलालों का बोलबाला*

अम्बेडकरनगर
महिलाओं की सुरक्षा के लिए जिला मुख्यालय पर खोले गए महिला थाने में दलालों का बोलबाला है। लोगों का आरोप है कि यहां सरकार की सख्ती के बाद भी यहां कुछ मुलाजिम सीधे तो कुछ दलालों के माध्यम से अपने हाथ की खुजली मिटा रहे हैं। इससे खाकी तो दागदार हो ही रही है साथ ही महिला पुलिस से भी लोगों का विश्वास धूमिल हो रहा है। शासन के फरमान के बाद भी पुलिस और फरियादियों के बीच का रिश्ता नहीं सुधर रहा है। इसके कारण फरियादी पुलिस के पास जाने से कतराते हैं और इसका बेजा फायदा थाने में सक्रिय दलाल उठाते हैं।यहां कई छोटे-मोटे दलाल भी अपनी भूमिका निभा रहे हैं।यह फरियादियों का काम कराने के एवज में मोटी रकम वसूलते हैं और उसमें साहब भी खुश और दलाल भी मालामाल हो रहे हैं। थाने में कुछ दलाल अपनी गहरी पैठ बना बैठे हैं। थानाध्यक्ष कोई भी रहे, उनके संबंध हमेशा से ही मधुर रहते हैं। क्यों कि दलाल साहब को एक मोटी रकम दिलाते हैं, जिसका प्रतिफल उन्हें भी मिल ही जाता है। लोगों का आरोप है कि यहां सरकार की सख्ती के बाद भी यहां कुछ मुलाजिम सीधे तो कुछ दलालों के माध्यम से अपने हाथ की खुजली मिटा रहे हैं। इससे खाकी तो दागदार हो ही रही है साथ ही महिला पुलिस से भी लोगों का विश्वास धूमिल हो रहा है। यहां कई छोटे-मोटे दलाल भी अपनी भूमिका निभा रहे हैं। लेकिन सूत्रों का दावा है कि यहां अभी ऐसी कई मुलाजिम हैं जो खाकी को दागदार कर सरकार की साख को भी बट्टा लगाने पर तुले हैं।जानकार बताते हैं कि महिला थाना होने के कारण यहां केवल उन्हीं लोगों को ध्यान होता है जो मामलों में संलिप्त होते हैं, ऐसे में आम आदमी का यहां ध्यान न होने के कारण भ्रष्टाचार का बोलबाला लगातार बढ़ रहा है। लोगों का कहना है है कि अम्बेडकरनगर में महिला अपराध अन्य जिलों से अधिक है। अब देखना होगा पुलिस कप्तान डॉक्टर कौस्तुभ की नजर इस थाने पर पड़ती है या नहीं।उत्तर प्रदेश के अम्बेडकरनगर जिले में महिला थाने में एसएचओ पद पर नियमों को ताख पर रख कर प्रियंका पांडे को पुलिस अधीक्षक डॉक्टर कौस्तुभ द्वारा दूसरी बार दिया गया है। “महिला थाना काफी समय से भ्रष्टाचार का अड्डा बन चुका है। यहां रिश्वत की आड़ में इंसाफ पिस रहा है। पीड़ितों को धक्के खाने को मिल रहे हैं। घटनाये कैसी भी हो पर न्याय किसी को नही मिल रहा है।”सूत्रों के अनुसार, उत्तर प्रदेश में थाना स्तर पर बढ़ रहा भ्रष्टाचार एक बड़ी चिंता बना हुआ है। थाना पुलिस निरंकुश भी दिखाई देती है। सत्ताधारी पार्टी का अक्सर थाना पुलिस से टकराव देखने को मिलता रहता है।इन दलालों के हौसले इतने बुलन्द है कि चाहे जैसा भी काम हो उनके लिए संभव हो जाता है जबकि मामूली काम के लिए भी लोगों को दर्जनों चक्कर थाने का लगाना पड़ता है। ये दलाल चाहे आम इन्सान के रूप में हो अथवा राजनैतिक दल के विशेषकर सत्ताधरी दल के लोग इसमें अधिक होते है। दलालों के माध्यम से झगड़ा – फसाद का निपटारा कराने में भी इनकी अहम् भूमिका होती है। सुविधा शुल्क के जोर से बड़े मामले भी चन्द मिनट में समाप्त कर दिये जाते है। अग यही खेल प्रत्येक थाने में चलता रहा तो पीडि़तों को न्यायालय नहीं बल्कि दलालों की शरण में जाना पसन्द करेगें। थानों में जिसकी लाठी उसकी भैस वाली तर्ज पर फैसला किया जाता है। इसी तरह की मनमानी का परिणाम है। इससे पता चलता है कि महिला थाने रिश्वतखोरी में लगे हुए हैं। उत्तर प्रदेश पुलिस अपनी छवि को कितना भी साफ बताने की कोशिश करे, लेकिन जमीनी हकीकत मैला ही है।”

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