
*संस्कार, साधना और सेवा का संगम — नेत्रहीन विद्यार्थियों संग आत्मजागरण का आयोजन*
*जहाँ नेत्र नहीं, वहाँ भी नेत्र-ज्योति का अनुभव ध्यान से संभव है.. स्वामी तथागत प्रवीण*
*समर्थगुरु ध्यान सेवा केंद्र, खंडवा द्वारा विशेष ध्यान एवं आत्मजागरण कार्यक्रम*
खंडवा। समर्थगुरु ध्यान सेवा केंद्र, खंडवा के तत्वावधान में निमाड़ अंचल नेत्रहीन संघ में बुधवार सायं विशेष ध्यान एवं आत्मजागरण कार्यक्रम का आयोजन किया गया। यह आयोजन नेत्रहीन विद्यार्थियों के लिए प्रेरणा, आत्मबल और आंतरिक ज्योति का अद्भुत संगम सिद्ध हुआ।
कार्यक्रम में स्वामी आनंददेव जी एवं स्वामी तथागत प्रवीण जी ने अपने आध्यात्मिक विचारों से वातावरण को ऊर्जा और शांति से भर दिया। स्वामी तथागत प्रवीण जी ने कहा — “नेत्रों से नहीं, चेतना से देखने की कला ही ध्यान का सार है। जब मन शांत होता है, तब भीतर का अंधकार स्वयं प्रकाश में बदल जाता है।”
स्वामी आनंददेव जी ने विद्यार्थियों को ध्यान साधना का महत्व बताते हुए कहा कि जीवन में जो भीतर जागता है, वही सच्चा दृष्टा बनता है। कार्यक्रम की मुख्य अतिथि साहित्यकार हर्षा शर्मा ने कहा कि नेत्रहीनता केवल शरीर की अवस्था है, आत्मबल और साधना से हर व्यक्ति अपनी राह खुद बना सकता है। कार्यक्रम की अध्यक्षता नंदरामजी आवचे ने की। समाजसेवी जितेन्द्र नेभनानी, कमलेश नेभनानी एवं बीना नेभनानी ने आयोजन में विशेष सहयोग दिया। भक्ति रस से ओतप्रोत गीत प्रज्ञा मां द्वारा प्रस्तुत किए गए, जिन्होंने पूरे वातावरण को भक्ति और भावनाओं से भर दिया।
कार्यक्रम का संयोजन ज्योत्सना मां द्वारा किया गया, जिन्होंने आयोजन की रूपरेखा, संचालन और समन्वय में समर्पित भूमिका निभाई। आचार्य सीमा मां के मार्गदर्शन में यह आयोजन नेत्रहीन विद्यार्थियों के आत्मजागरण, ध्यान साधना और आत्मबल विकास की दिशा में एक प्रेरणादायक प्रयास रहा।
कार्यक्रम के अंत में सभी उपस्थितजनों ने मौन ध्यान कर “प्रकाश भीतर है” का संकल्प लिया और आत्म-ज्योति से जीवन आलोकित करने का प्रण किया।
इसके पश्चात सभी विद्यार्थियों एवं अतिथियों को भोजन प्रसाद का वितरण किया गया।








