


मध्य प्रदेश के सिवनी जिले से एक चिंताजनक मामला सामने आया है, जिसने पूरे प्रदेश के पत्रकारों में रोष की लहर दौड़ा दी है। सिवनी की कोतवाली पुलिस ने अपराध क्रमांक 899/2025 दर्ज करते हुए लगभग 8 से 10 लोगों को आरोपी बनाया, जिनमें एक स्थानीय पत्रकार सिवनी न्यूज़ के संपादक अजय ठाकरे का नाम भी शामिल किया गया है।
वह पत्रकार घटना स्थल पर समाचार कवरेज के लिए मौजूद थे, लेकिन बिना किसी ठोस जांच के उन्हें आरोपी बना दिया गया। यह कदम न केवल पत्रकारिता की स्वतंत्रता पर हमला माना जा रहा है, बल्कि लोकतंत्र की जड़ों को भी कमजोर करने वाला है।
राज्य सरकार बार-बार पत्रकारों के मान-सम्मान की बातें करती है, लेकिन जमीनी स्तर पर हकीकत कुछ और ही है। फील्ड में सच्चाई दिखाने वाले पत्रकारों को कभी धमकियों का सामना करना पड़ता है, तो कभी झूठे मामलों में फंसाकर उनकी आवाज दबाने की कोशिश की जाती है।
ऐसे में सवाल यह उठता है — क्या पत्रकार सुरक्षित नही रह सकता?
क्या सच्चाई लिखने वाली कलम पर एफआईआर ही होगी?
पत्रकार संगठनों ने उठाई आवाज — “जांच के बिना केस दर्ज न हो”
प्रदेश के कई पत्रकार संगठनों ने इस घटना की कड़ी निंदा की है जिनमें श्रमजीवी पत्रकार संघ के जिला अध्यक्ष मनीष जैन, सिवनी ब्लॉक अध्यक्ष संजीव क्रिडिया समेत अन्य पदाधिकारियों और सदस्यों ने निंदा करते हुए शासन-प्रशासन से मांग की है कि पत्रकारों पर बिना जांच के कोई भी मामला दर्ज न किया जाए।
पत्रकारों का कहना है कि यदि किसी पत्रकार के खिलाफ कोई शिकायत आती है, तो पहले राजपत्रित अधिकारियों से निष्पक्ष जांच कराई जाए। फील्ड में काम करने वाले पत्रकारों को इस तरह से आरोपी बनाना लोकतंत्र की आत्मा पर आघात है।












