मध्यप्रदेश

पेंच टाइगर रिजर्व में “बाघदेव”अभियान का शुभारंभ अंतर्राष्ट्रीय जैव विविधता दिवस 29 जुलाई तक चलाया लाएगा

"बाघदेव ”अभियान अंतर्गत बफर क्षेत्र की समस्‍त इको विकास समितियों में मिट्टी के बाघ बनाने की मुहीम चलेगी

रिपोर्टर देवेन्द्र कुमार जैन भोपाल मध्यप्रदेश
वन्यजीवों विशेषकर बाघों से मानव संस्कृति का जुड़ाव सदियों पुराना है। मानव समुदायों ने वन्यजीवों, विशेषकर बाघों को पूजनीय मानते हुए उन्‍हें अपने लोकाचार में सदैव ही उच्च विशिष्ट स्‍थान प्रदान किया है। संभवत: यही कारण है कि तमाम विपरीत परिस्थितियों के बाद भी न केवल बाघ और उनके रहवास भारत में सुरक्षित रहे हैं, बल्कि विश्व में सर्वाधिक बाघ भारत में ही हैं । बाघों के संरक्षण में स्थानीय, विशेष कर आदिवासी समुदायों की भूमिका सदैव से अति महत्वपूर्ण रही है, दैनिक रीति-रिवाजों से लेकर जीवन के अनेकों पहलुओं में बाघ के महत्व को स्वीकार करते हुए इन समुदायों ने बाघ को “ बाघदेव ” के रूप मे स्वीकार किया हुआ है। बाघों के संरक्षण महत्व को विश्व समुदाय के समक्ष प्रस्तुत करने की दृष्टि से प्रतिवर्ष 29 जुलाई को विश्व बाघ दिवस मनाया जाता है l यह एक ऐसा अवसर होता है ज़ब संपूर्ण विश्व बाघ संरक्षण के प्रति अपने प्रयासों और प्रतिबद्धता को और अधिक मजबूत करने का प्रयास करता है, इसी उद्देश्य से एक कदम और आगे जाते हुए पेंच टाइगर रिजर्व, सिवनी, मध्‍यप्रदेश का प्रबंधन भी इस अवसर को आदिवासी संस्कृति को सम्मान देने और बाघों की शक्ति के प्रति उनके विश्वास को नई पहचान देने के अवसर के रूप मे आयोजित करने जा रहा है। इस वर्ष पेंच प्रबंधन अंतर्राष्‍ट्रीय जैव विविधता दिवस 22 मई से विश्‍व बाघ दिवस 29 जुलाई तक की अवधि के लिए एक नया अभियान का आरम्भ करने जा रहा है जिसे नाम दिया गया है “ बाघदेव ”आज भी “ बाघदेव ” को ग्रामीण क्षेत्रों में देवता के रूप पूजा जाता है और उनसे मन्नते मांगी जाती हैँ, वरदान मांगे जाते हैं। यह परम्‍परा सतत् रूप से आज भी प्रचलित है। “ बाघदेव ” अभियान के अंतर्गत बफर क्षेत्र की समस्‍त 130 इको विकास समितियों में मिट्टी से बाघ बनाने की मुहीम चलाई जाएगी l इसके अंतर्गत समिति सदस्य अपने हाथो से मिट्टी के बाघ बनाएंगे। उन्‍हें इस कार्य में ग्राम पंचधार के मिट्टी के बर्तन और खिलौने बनाने वाले विशेषज्ञ कुम्हार सहायता करेंगे l इस दौरान पेंच प्रबंधन द्वारा समिति सदस्‍यों को पोस्टर आदि के माध्यम से जागरूक किया जाएगा कि बाघों से ही हमें अपनी प्राणवायु ऑक्सीजन, भोजन, पानी और ऐसे ही बहुत सारे वरदान मिलते हैं। इस अवसर पर ग्रामीण मिट्टी के बाघ बनाकर उससे प्रकृति के इन तत्वों को वरदान के रूप में या फिर कोई अन्य वरदान भी मांग सकते हैं। इस प्रकार बने बाघों को पार्क प्रबंधन द्वारा एकत्रित कराकर भट्टी में पकाया जायेगा जिन्हें खवासा में निर्माणाधीन स्‍टील स्‍क्रैप से बन रही बाघ कलाकृति के पास स्थापित कर एक नए आस्था स्थल में संजोया जाएगा। पेंच प्रबंधन का प्रयास इस वर्ष टेराकोटा (मिट्टी) के अधिकाधिक बाघ कलाकृति बनाने का हैं ।इको विकास समिति के सदस्यों के साथ-साथ पर्यटक एवं अन्‍य बफर क्षेत्र के बाहर के रहवासी भी इस मुहीम से जुड़ कर अपने हाथ से बाघ बना कर उसमे अपना नाम लिखकर अपनी मनोकामना बाघ देव से मांग सकेंगे l बाघ संरक्षण में समुदायों के भावनात्‍मक जुडाव के साथ यह पंचधार के मूर्तिकारों के लिये रोजगार के नये आयाम भी खोलेगा।

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