सोनभद्र

महायज्ञ में सातवें दिन परिक्रमा के लिए उमड़ पड़ा श्रद्धालुओं का रेला

विंढमगंज क्षेत्र के जोरुखाड़ ग्राम में आयोजित श्रीराम चरितमानस महायज्ञ के सातवें दिन कथा में मार्मिक प्रसंगों का हुआ वर्णन

महुली सोनभद्र रिपोर्ट ( नितेश कुमार)विंढमगंज (सोनभद्र)। थाना क्षेत्र के जोरुखाड़ ग्राम पंचायत में मलिया नदी के किनारे स्थित गुलर घाट पर चल रहे नौ दिवसीय श्रीरामचरितमानस नवाह परायण महायज्ञ में सातवें दिन परिक्रमा करने वाले श्रद्धालुओं की भीड़ उमड़ पड़ी। यज्ञाचार्य पंडित तेजभान त्रिपाठी एवं सह आचार्य पंडित जमन शास्त्री ने वेदमंत्रों की ध्वनि के साथ विधिपूर्वक वैदिक अनुष्ठान कर हवन कुंड में आहुतियां दी। कथावाचक पंडित विवेकानंद जी महाराज ने राम वनवास की भावविभोर कथा से कथा श्रोताओं को द्रवित कर दिया। महाराज जी ने कहा कि रामचंद्र जी सहित चारों भाइयों के विवाह के बाद अयोध्या में चारों ओर खुशियां छा गीं हैं। राजा दशरथ अपनी राजसभा में बुद्धिमान मंत्रियों से परामर्श कर गुरु वशिष्ठ से रामचंद्र जी को राजपद देने का विनम्र आग्रह करते हैं। राम जी के राज्याभिषेक की तैयारियां देखकर देवता चिंता में पड़ गए। देवतागण सोचते हैं कि यदि रामचंद्र जी राक्षसों का संहार किये बिना सिंहासनारूढ़ हो जाएंगे तो उनके अवतार का प्रयोजन सिद्ध नहीं होगा। उन्होंने ज्ञान व बुद्धि की देवी सरस्वती से कोई कुचक्र रचने की गुहार लगाई। देवताओं की प्रार्थना सुन देवी सरस्वती ने कैकेयी की प्रिय दासी मंथरा का बुद्धि फेर दिया। सौतिया डाह के ढेरों उदाहरण और अपनी कुचक्र चाल से उसने कैकेयी को समझाया और राजा द्वारा पूर्व में दिये गये दो वचनों को मांगने के लिए उकसाया। कैकेयी ने राजा दशरथ से राम की सौगंध देकर पहला वर पुत्र भरत को राजगद्दी और दूसरा वर रामचन्द्र जी को चौदह वर्ष का वनवास मांग लिया। राज्याभिषेक के तैपारियों के बीच राम सहर्ष वन जाने की आज्ञा स्वीकार कर लेते हैं। राम, सीता व लक्ष्मण के वन जाते ही दशरथ ने पुत्र प्रेम में अपने प्राणों का उत्सर्ग कर दिया। यज्ञाधीश स्वामी रामानंद जी महाराज ने बताया कि बारह फरवरी को यज्ञ की पूर्णाहुति पर विशाल भंडारा का आयोजन किया जाएगा।

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