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संसार में सुख का आधार कीर्तन और प्रभु सुमिरन है : पंडित कैलाशचंद्र डोंगरे

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संसार में सुख का आधार कीर्तन और प्रभु सुमिरन है : पंडित कैलाशचंद्र डोंगरे

कैलाश नगर में श्री शिवमहापुराण ज्ञान गंगा यज्ञ कथा का चौथा दिन

खंडवा। संसार में व्यक्ति सुख को खोजने में जीवन भर किसी न किसी गुत्थी में उलझा रहता है। सुख की खोज में कई महापुरुष दुनिया भर में घूमे आखिर में उन्हें प्रभु भक्ति और कीर्तन का मार्ग ही अंतिम किरण के रूप में दिखाई दिया। संसार में सुख का आधार ईश स्मरण और कीर्तन है। पापी पाप का अत्यधिक बोझ होने पर भगवान् को याद करता है, चोर पकडे जाने के बाद भगवान् का नाम लेता है, गरीब भूख लगने पर, किसान सूखा पड़ने पर, मुसाफिर ट्रैन निकल जाने पर, व्यापारी नुकसान होने पर, विद्यार्थी परीक्षा पास आने पर, नेताजी चुनाव आने पर भगवान् को याद करते है, अफसर रिश्वत लेते हुए पकड़े जाने पर और धर्मात्मा हर पल में ईश्वर को याद करता है। संसार की यह माया है। इसलिए सुख केवल ईश्वर की भक्ति और उसके सुमिरन में है।
यह उदगार पंडित कैलाश चंद्र डोंगरे ने कैलाशनगर में शिवमहापुराण कथा के वाचन के चौथे दिन व्यक्त किये। समाजसेवी सुनील जैन ने बताया कि शिव महापुराण की कथा का वाचन करते हुए श्री डोंगरे ने शिवलिंग पूजन के महत्व को बताया। उन्होंने कहा संसार में युगों युगों से मेरे भोले का विभिन्न स्वरूप में पूजन होते आया है। शिव अनंत है और स्वयं ईश्वर ने पृथ्वी पर जन्म लेने पर उनका पूजन किया , रावण से लेकर हर सुर असुर ने भोले नाथ को पूजा। भोले हर उस मन की सुनते है जो ध्यान से उनका मनन करता है। पंडितजी ने बताया शिवलिंग का पूजन विभिन्न स्वरूपों में होता रहा है। सतयुग में रत्न का शिवलिंग बनाकर उसका पूजन होता था, त्रेतायुग में स्वर्ण का, द्वापर में पारद का और कलयुग में पार्थिव शिवलिंग का निर्माण कर शिवलिंग पूजन होता है। ऐसे ही हर दिन विभिन्न आकृति में पार्थिव शिवलिंग बनाकर उनका पूजन करना चाहिए,
कथा के चौथे दिन शिव पार्वती विवाह प्रसंग उत्सव का आयोजन किया गया। दो बालक बालिकाओ ने सुंदर रूपों में शिव पार्वती का स्वरुप धारण कर कथा प्रसंग में भाग लिया। इस अवसर पर उपस्थित कथा श्रवणकर्ताओ ने प्रतीकात्मक शिव पार्वती का आशीर्वाद लिया और दक्षिणा प्रदान की।

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