विजय माजूमदर
त्रिलोक न्यूज़ कांकेर पखांजुर——–भारत का 28 वां राज्य छत्तीसगढ़ एक आदिवासी बाहुल्य राज्य है। इन आदिवासी बंधूओं ने भारत के स्वतंत्रता संग्राम में प्रारंभ से ही महत्वपूर्ण योगदान दिया है। भारत की स्वतंत्रता समर में आहुति देने वालों में यहां के आदिवासी कभी भी पीछे नहीं रहे। इस प्रदेश के आदिवासी स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों में अमर शहीद गेंदसिंह बाऊ का नाम अग्रिम पंक्ति में रखा जा सकता है ।परलकोट विद्रोह के जननायक अमर सहित गेंदसिंह का जन्म नारायणपुर के बम्हनी नारायणकोट नामक स्थान पर हुआ। कहा जाता है बचपन से ही गेंद से ही निडर और साहसी व्यक्ति था और साथ ही साथ चतुर ताकतवर था । जब गेंदसिंह विवाह योग्य हुआ तो गसगा बिरादर ने देहारी परिवार के घर से लड़की से सामाजिक रीति-रिवाजों से विवाह कराया। शादी करने के पश्चात उन्होंने परलकोट में आकर बस गए गेंदसिंह के पांच पुत्र थे। परलकोट में गेंदसिंह की उदारता साहस न्यायप्रियता के वजह से उन्हें राजा मानने लगे । गेंदसिंह परलकोट में लोगों को बसाया खेती करने घर बनाने के लिए जमीन दिया इसलिए उन्हें भूमियार के नाम से जाना जाता है । जिसके कारण उन्हें भूमिया राजा भी कहा जाता है। गेंदसिंह कि अदम्य साहस, चतुरता, निडरता, ताकत व नेतृत्व कौशल क्षमता होने के वजह से परलकोट में विशाल किला एवं महल बनवाया। धीरे-धीरे गेंद सिंह का वर्चस्व पूरे परलकोट रियासत में चांदा तक फैल गया। वर्तमान में भी परलकोट सितरम से दो फर्लांग दूरी पर नदी के उस पार गेंदसिंह के किला राजमहल का अवशेष खंडहर के रूप में है । महल के पूर्व दिशा में राजा द्वारा निर्मित तालाब शस्त्रागार किला में चढ़ने वाली सड़क एवं सीढ़ी का अवशेष है। वही किला से उतरते वक्त पूर्व दिशा की ओर पांच मूर्तियां है जो अस्त-व्यस्त बिखरा पड़ा है ठीक उसके बगल में राजा रानी का नहाने का पत्थर आज भी स्थित है । महल की प्रवेश द्वार के ठीक सामने भीमादेव और उसी के बगल में गेंद सिंह जी की मठ स्थित है । तथा उसके आसपास पत्थर में कई बहाना (ओखली) बना हुआ स्पष्ट दिखाई देता है जहां महिलाएं अनाज को कूटकर चांवल और चिवड़ा खाने योग्य बनाते थे। गेंदसिंह की स्थापना किया हुआ मां दंतेश्वरी जी की मूर्ति और और मडि़या मगराज शितला माता की देवगुड़ी आज भी स्थित है। महल के पश्चिम दिशा में तालाब राजा द्वारा स्थापित दो कमरों का थाना का अवशेष है । साथ ही साथ जहां राज दरबार लगाई जाती थी उसका भी अवशेष हैं। महल के चारों दिशा में फलदार वृक्ष आम के बगीचा अमरूद ताड़ आदि फल लगाई गई थी जो आज भी मौजूद है। दंतेश्वरी माता मंदिर के बगल में ही माड़िया मोंगराज विराजमान है इसके बारे में कहा गया है की गेंदसिंह दंतेश्वरी माता , शितला माता एवं मडि़या मोंगराज की सेवा विनती अरजी करते थे। जिससे उन्हें शक्ति मिलती थी और गेंदसिंह अपने रियासत परलकोट के सभी लोगों की रक्षा करते थे। निर्धन भूखे प्यासों को धन दौलत अनाज आदि देकर उनका सहयोग करते थे परलकोट रियासत की जनता राजा को भगवान की तरह पूछते थे उनकी कीर्ति पूरे देश में फैलने लगी। इसकी भनक लगते ही अंग्रेज और मराठा शासक राजा गेंदसिंह की धन दौलत को हड़पने की साजिश रचने लगे । बस्तर में मराठों और ब्रिटिश अधिकारियों की उपस्थिति से उन्हें अपनी पहचान का खतरा उत्पन्न हो गया था। बलंट ने 1795 ईस्वी में जब इनके अंचल में प्रवेश किया था तभी से असंकित और उद्विग्न हो उठे थे। परदेसी सभ्यता से यह खतरा महसूस करने लगे थे। इसी कारण वे अपने बाणों और भालों को तभी से नुकीले बना रहे थे। यह विद्रोह परलकोट जमींदारी की राजधानी परलकोट से ही प्रारंभ हुआ था। प्रारंभिक स्थिति में विद्रोहियों ने लोगों को लूटा था। तब उन्हें यह मालूम हुआ की मराठा सेना इस पर कोई हस्तक्षेप नहीं कर रही है। तो वह अधिक आक्रामक हो गए शीघ्र ही मराठा तथा अंग्रेज अधिकारियों पर घाट लगना प्रारंभ कर दिया । हर वर्ष की भांति अक्टूबर 1824 में दशहरा पर्व मनाने जब राजा गेंदसिंह बाऊ जगदलपुर गए हुए थे। इस ताक को भांपकर अंग्रेज परलकोट में पहुंचकर षड्यंत्र रचने लगे और उनके महल में जहां पहले से ही ताला लगा हुआ था दो ताला लगाकर उसमें पत्र लिखकर रख दिया एवं भोले भाले आदिवासीयों को यह कहने लगे की गेंदसिंह मारा गया । अब उनका महल हमारे कब्जे में है। और लूटपाट कत्लेआम कर लोगों में दहशत फैलाने लगे। जब राजा गेंदसिंह नवंबर 1824 में महल वापस आए तो वहां दूसरा ताला व पत्र देखकर हैरान रह गए उन्हें कुछ सुझ नहीं रहा था । तुरंत उन्होंने अपने लोगों की सभा बुलाई और अंग्रेजों की लूट खसोट और शोषण से बचाने मराठा व अंग्रेजों को सबक सिखाने 24 दिसंबर 1824 ई को विशाल सभा का आयोजन किया जिसमें परलकोट के मांझी मुखिया गायता पटेल अबूझमाडिया 24 दिसंबर 1824 में परलकोट में एकत्रित हुए। जहां मराठा एवं अंग्रेजों की कुरूरता शोषण को कुचलने की रणनीति बनाई गई। इस क्रांति की सूचना धावड़ा वृक्ष की टहनियों व ढोल नगाड़ों के साथ पूरे परलकोट रियासत में संदेश भेजा गया धावड़ा वृक्ष के पत्ते सूखने से पहले सभी एकत्रित होने लगे। चूंकि गेंदसिंह दूरदर्शी थे उन्हें इस बात की भनक लग चुकी थी कि अंग्रेज की नजर हमारे धन दौलत सोने चांदी जवारत पर है। उन्होंने तमाम धन दौलत को महल के पश्चिम दिशा में मडिया मगराज मंदिर के पीछे के गुप्त कुएं में पाठ दिए जो अभी अज्ञात है और उनके सैनिकों के धन दौलत भी कुएं में बंद कर दिए । हजारों फलदार वृक्ष को काटे गए गेंदसिंह का कहना था कि मेरे मरने के बाद और प्रजा पर अत्याचार ना हो मेरा धन दौलत अंग्रेजों के हाथ नहीं लगनी चाहिए। जनता के पास बांट देना चाहिए गेंदसिंह के सभी सैनिक अपने धनुष भाला नुकीला कर धार करने लगे । गेंदसिंह के सैनिक मधुमक्खी भी थे जिन्हें जैविक हथियार के रूप में जाना जाता है अंग्रेज सेना जैसे ही परलकोट पहुंचने लगे मधुमक्खियां एवं अबूझमाडिया सिपाहियों के द्वारा वार करते गए जिससे अंग्रेज परास्त हो कर भाग गए। अंग्रेज मेजर सी व्ही एग्नू के होश उड़ गए और वहां से भाग गए । पुनः इस विद्रोह को कुचलने के लिए इग्नू के पहल पर 1 जनवरी 1825 को चांदा से अंग्रेज सेना आ गई तो इन विद्रोह में छापामार युद्ध प्रारंभ कर दिया। विद्रोह के कारण इस अंचल में भुखमरी की स्थिति पैदा हो गई थी । विद्रोह का संचालन अलग-अलग टुकड़ियों में मांझी लोग करते थे। रात्रि में सभी विद्रोही किसी गोटूल में एकत्रित होते थे और वहां से अगले दिन की विद्रोह का संचालन और रणनीति बनाते थे । विद्रोह की तीव्रता को देखकर मेजर इग्नू ने 4 जनवरी 1825 को चांदा की पुलिस अधीक्षक कैप्टन पेब को निर्देश दिया कि विद्रोह को तत्काल दबाए। संगठन क्षमता के धनी गेंदसिंह बहादुर व्यक्ति थे उनके पास प्रारंभिक अस्त्र-शास्त्र और अंग्रेजों के पास अत्याधुनिक हथियार बंदूक तोपें के सामने टिक नहीं पाए फलस्वरुप मराठों और अंग्रेजों की सेना ने 10 जनवरी 1825 को परलकोट को घेर लिया और गेंदसिंह गिरफ्तार कर लिए गए तथा गेंदसिंह और उनके साथियों पर झूठा मुकदमा दिखावटी रूप में कराकर 20 जनवरी 1825 को उनके महल के सामने परलकोट में फांसी पर लटका दिया गया। गेंदसिंह के पांच पुत्र में से एक पुत्र भी मारा गया। उनके चार पुत्र बच गए जिसमें एक महाराष्ट्र और एक कांकेर और एक छोटे डोंगर में बस गए। गेंदसिंह के बड़े पुत्र कुमुदसाय जिनके पुत्र टेटकू सिंह और उनके दो पुत्र मंगल सिंह और सुंधर सिंह जो सीतरम में बसे हैं । मंगल सिंह के दो पुत्र थे सुकरू एवं सकरिया । सुधरसिंह के भी दो पुत्र मेहतर एवं वासु है । सकरिया के वर्तमान में पांच पुत्र हैं परशुराम निरशंकि निर्धन रतिराम और जोगेंद्र इस प्रकार मेहतर के दो पुत्र परमेश्वर और रामसु। वासु के भी दो पुत्र रमेश और समेश सभी वर्तमान में सितरम में निवासरत हैं । गेंदसिंह के छोटे बेटे के वंशज वर्तमान में कांकेर में निवास रत है। उनके कुछ वंशज छोटे डोंगर और जगदलपुर में निवास रत है ।परलकोट थाना 1886 में परतापुर में स्थानांतरित हुआ आज परलकोट कांकेर जिला में पखांजूर तहसील में वीरान गांव के रूप में दर्ज है । केवल कुछ खंडहर और पुरातत्व महत्व की सामग्री विलुप्त अवस्था में है बांदे से पूर्व दिशा की ओर लगभग 30 से 40 किलोमीटर दूर सीतरम में आज भी परलकोट जमींदारी के अवशेष स्पष्ट दिखाई देते हैं। मां दंतेश्वरी का प्रसिद्ध मंदिर है । नदी किनारे होली से रंग पंचमी तक आज भी बड़ा देव जात्रा मेला लगता है गेंदसिंह का बलिदान बस्तर भूमि की व्यक्ति के लिए एक अविस्मरणीय मिसाल और अध्याय है। प्रत्येक बस्तर वासी का माथा इस तथ्यबोध से गौरवांवित हो जाता है कि बस्तर जैसे बीहड़ आदिवासी बाहुल्य अंचल में आज जाना है स्वतंत्रता चेतना के प्रथम बीजारोपण के लिए उर्वर भाव मिला भूमि मिली गेंदसिंह भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में बस्तर के ही नहीं वरुन पूरे छत्तीसगढ़ के प्रथम शहिद हैं। इस विद्रोह को हम एक तरह से 1857 के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम का शंखनाद भी कर सकते हैं ।स्वतंत्रता की अलख जगाने दी है जिसने कुर्बानी तेरे लहू के कतरे ने सीचा एक बगिया पुरानी महक रहा अब तेरा आंगन कह रही तेरी कहानी मातृभूमि की भीषण रण में जो बन गया बलिदानी पराक्रमी बुद्धिमानी चतुर न्याय प्रिय और स्वाभिमानी परलकोट का वीर सपूत और स्वाभिमानी परलकोट का वीर सपूत तू था सच्चा हिंदुस्तानी यह सहित तुझे शत-शत नमन शत-शत नमन आज 20 जनवरी 2025 को गेंदसिंह के शहादत दिवस का 200 वां शहादत दिवस पूर्ण हो रहा है ऐसे विर सपूत के नाम से छत्तीसगढ़ में राज्य अलंकरण का ना देना छत्तीसगढ़ के प्रथम शहित के सम्मान के खिलाफ है हमारे समाज की ओर से विनती है शासन को छत्तीसगढ़ सरकार यदि सच्चे दिल से शहिद गेंद सिंह के 200वां वर्ष पर उन्हें सम्मान अगर देना चाहती है तो उनके नाम से छत्तीसगढ़ में किसी एक क्षेत्र पर राज्य अलंकरण दे और साथ ही साथ उनके वंशजों को पेंशन दें।
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