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चंग की धमाल परम्पराओं को संजोने में जुटे गांव के युवा…

त्यौहारो को लेकर नई पीढ़ी का रुझान हुआ कम

चंग की धमाल परम्पराओं को संजोने में जुटे है गाँव के युवा
नई पीढ़ी का रुझान हुआ कम
सिमटने लगी फाल्गुन में चंग थाप गायन की परंपरा होली पर होता था खूब धमाल युवाओं में उत्साह कम….
आधुनिकता के बदलते परिवेश में ओर डिजिटलाईजेशन के कारण वर्तमान में त्योहारों की रौनक खत्म सी होती जा रही है, एक समय था जब कोई भी त्यौहार आता तो लोगों के दिलों में उत्साह ओर उमंग यू उमड़ पङती की मानो कोई खुशी ठिकाना नहीं रहता।
चंग बजाते होली गीतों को मस्ताना अंदाज में गाते मचलते लोग बमुश्किल से मिलते हैं पहले सभी गांवों के मोहल्लों में अपनी अपनी चंग पार्टी होती थी चंग बजाने के साथ फागुन के गीतों के साथ मस्ती का सिलसिला गणगौर तक चलता था।
गांवों में ढफ मंडली की कोई विशेष वेश भूसा नहीं होती है लोग प्रतिदिन पहनाने वाले कपड़े पहनकर ही ढप बजाते है। ढफ वादन बहुत ही अनुशासित व्यवस्थित तरीके से होता है। गांव की चौपालो पर रसिको की टोलियों ढफ की थाप पर थिरकते हुए दिखाई देती है।
नई पीढ़ी का रुझान त्यौहारो के प्रति घटने लगा है आज के युवाओं को ढफ बजाना नही आता है।
इनकी जगह फिल्मी गानों ने ले ली है पहले जहां बसंत पंचमी से ही ढफ ओर नगाड़े की आवाज सुनाई लग जाती थी वो अब होली पर भी सुनाई नहीं दे रही है। हालात ऐसे हो रहे हैं कि आने वाली पीढ़ी होली की बाते सिर्फ कहानियो में ही सुनेगी। परंतु अभी भी कई जगह चंग धमाल की पार्टी कभी कभार देखने को मिल जाती है ग्राम सबलपूर के पुखराज गुर्जर, रामाअवतार जांगिड़, रघुवीर सिंह, राजू राम गुर्जर, सुरेश जांगिड़, गोविंद पोषवाल , श्रवण सिंह नरूका, धनाराम बागङी आदि युवाओं ने अपनी चंग की धमाल परम्परा को संजोये रखा है।
रिपोर्ट- नटवर लाल जांगिड़

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