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क्या भोजपुरी सिर्फ़ मनोरंजन की अश्लील भाषा बनकर रह गई है

भोजपुरी के अश्लील गानों के खिलाफ़ बेतिया से अजीत गुप्ता पद यात्रा पर निकले हैं।

बेतिया:- बिहार:- से अहमद राजा खान कि रिपोर्ट

अजीत गुप्त पद यात्राशील-अश्लील की नैतिक कसौटी भी इसी तरह तय की जाती है. कमतर-बेहतर की भी. आप यह देखते होंगे कि अक्सर ही स्थानीय भाषा/बोली के अश्लील होने की बात कही जाती है. खासकर उस भाषा के लोकप्रिय स्वरूप को. भोजपुरी का उदाहरण लें तो बात एकदम स्पष्ट हो जाएगी. भोजपुरी के कुछ गायक लगातार अश्लील गाने गा रहे हैं

बिहार और उत्तर प्रदेश के करोड़ों आम लोगों की भाषा भोजपुरी को ‘अश्लीलता’ के शिकंजे से ‘बचाने’ के लिए जोर लगाया जा रहा है. हाल-फिलहाल, जून 2021 में लोकप्रिय भोजपुरी गायक खेसारी लाल यादव के खिलाफ एक प्राथमिकी (एफआईआर) दर्ज की गई थी. इस प्राथमिकी में शिकायतकर्ता, जो मुंबई में एक धार्मिक निकाय के मुखिया हैं, ने उनके गानों को ‘अश्लील और फूहड़’ बताया. उसी महीने, भाजपा सांसद रवि किशन ने केंद्रीय सूचना और प्रसारण मंत्रालय एवं यूपी और बिहार की राज्य सरकारों को पत्र लिखकर भोजपुरी फिल्मों में अश्लील सामग्री परोसे जाने पर प्रतिबंध लगाने की मांग की. उन्होंने नाराज जनता को आश्वासन दिया कि वह इस मुद्दे को संसद में उठाएंगे.।

आज के दौर में तो भोजपुरी भाषा एक अजीब समस्या से गुजर रही है। भोजपुरी फिल्मों और गीतों के माध्यम से इस भाषा का जितनी तेजी से प्रचार हो रहा है उतनी ही तेजी से भोजपुरी समाज भी अपने पतन की ओर जा रहा है। भोजपुरी में फूहड़ता और अश्लीलता का भाष्य रचा जा रहा है। ऐसा प्रतीत हो रहा है कि इस समय भोजपुरी गीतकार वात्स्यायन के कामसूत्र का भोजपुरी अनुवाद रच रहे हैं। काम-क्रीड़ा और वासना की हर एक भाव-भंगिमा पर बेशर्मी से गीत लिखे और गाये जा रहे हैं, जिसे भोजपुरी जनता सहजता से स्वीकार करके बड़े चाव से सुन रही है। भोजपुरी टीवी चैनलों ने इस अश्लीलता को घर–घर पहुंचा दिया है और उसे एक सामाजिक मान्यता दे दी है। इसे देख देखकर भोजपुरी समाज की पूरी पीढ़ी जवान हो रही है। आर्केस्ट्रा, डीजे और आइटम सोंग समाज के मनोरंजन की आधार रेखा बन चुके हैं।

 

एक निजी घटना का जिक्र करना जरूरी होगा कि एक बार एक महिला का बच्चा जो अभी महज स्कूल जाना शुरू ही किया था यानी अभी काफी छोटी उम्र का था, वह कई लोगों के सामने भोजपुरी के उन फूहड़ गानों को बिना अर्थ जाने ज़ोर–ज़ोर से सबके सामने गा रहा था, जिसकी वजह से उस महिला को लोगों के सामने शर्मिंदगी झेलनी पड़ रही थी। कारण पूछने पर उन्होंने बताया कि हमारे घर पर ज़्यादातर लोग भोजपुरी सिनेमा देखते और गाने सुनते हैं, यह भी घर पर मेरे मना करने के बावजूद सबके साथ देखता और सुनता है जिसके कारण यह काफी बिगड़ गया है। बच्चों के मन और मस्तिष्क पर पड़ रहे कुप्रभाव को इस उदाहरण से भली–भांति समझा जा सकता है।

 

भोजपुरी की दुनिया में अश्लील अभिनेता, गायक और अश्लील गीतकार बनने की होड़ मची हुई है। जो जितना फूहड़ गाना गा रहा है वह उतनी ही तेजी से चर्चित और लोकप्रिय हो रहा है। भोजपुरी समाज उनके पीछे भेड़ की तरह भाग रहा है, उन्हें देखने और सुनने के लिए हजारों–लाखों का हुजूम उमड़ रहा है। यह अपने इसी लोकप्रियता को आधार बनाकर भोजपुरी फिल्मों में एंट्री कर रहे हैं और रातों–रात सेलिब्रेटी बन रहे हैं। जबकि साफ–सुथरा और बढ़िया गाना गाने वाले भरत शर्मा और मदन राय जैसे गायकों के नाम भी यह पीढ़ी भूलती जा रही है।

कई बार देखा गया है कि सार्वजनिक जगहों और वाहनों में बजते हुए बेलगाम भोजपुरी फूहड़ गीत लड़कियों और स्त्रियों को असहज कर देते हैं। अश्लील गानों के बीच उन्हें पुरुषों की ताड़ती और पीछा करती हुई नजर किसी बुरे अनुभव से कम नहीं होती है। इन गानों ने हमारी रुचि और मानसिकता को इतना घटिया स्तर पर ला दिया है कि अब घटिया से घटिया स्तर की भोजपुरी फिल्म और गाना हमारे लिए सामान्य-सी बात हो गई है।

अहमद राजा खान

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