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एक ही स्थान पर वर्षों से पदस्थ डॉ. भूपेंद्र सिंह स्थानांतरण नीति पर उठे सवाल

चितरंगी विशेष प्रतिनिधि

चितरंगी सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र में मेडिकल ऑफिसर के पद पर डॉ. भूपेंद्र सिंह बीते से आठ – दस वर्षों से निरंतर पदस्थ हैं जबकि प्रदेश की स्थानांतरण नीति के अनुसार किसी भी अधिकारी को एक स्थान पर इतनी लंबी अवधि तक बनाए रखना नियमों के विरुद्ध माना जाता है डॉ. सिंह की लंबी तैनाती ने स्वास्थ्य विभाग की पारदर्शिता पर सवाल खड़े कर दिए हैं स्थानीय सूत्रों का कहना है कि चितरंगी में डॉ. सिंह की लगातार उपस्थिति के चलते अन्य योग्य चिकित्सकों को सेवा देने का अवसर नहीं मिल पा रहा है वहीं आम जनता में भी यह चर्चा जोरों पर है कि क्या डॉ. सिंह को किसी उच्चस्तरीय संरक्षण का लाभ मिल रहा है

राज्य शासन भले ही स्वास्थ्य सेवाओं में निष्पक्षता और पारदर्शिता के दावे करता हो, लेकिन चितरंगी की यह स्थिति उन दावों पर प्रश्नचिन्ह लगा रही है

कुछ स्थानीय जनप्रतिनिधियों और समाजसेवियों ने इस मामले में स्वास्थ्य विभाग से हस्तक्षेप करने की मांग की है। उनका कहना है कि स्थानांतरण नीति के अनुसार तीन वर्षों के भीतर अधिकारियों का तबादला होना चाहिए ताकि व्यवस्था में संतुलन बना रहे और सभी को समान अवसर मिले

अब देखना यह होगा कि स्वास्थ्य विभाग इस मामले को कितनी गंभीरता से लेता है और क्या डॉ. भूपेंद्र सिंह का स्थानांतरण जल्द किया जाएगा या यह मुद्दा यूं ही ठंडे बस्ते में चला जाएगा

विशेष टिप्पणी

*स्थानांतरण नीति की अनदेखी व्यवस्था पर गंभीर प्रश्न*

सरकारी तंत्र में स्थानांतरण नीति सिर्फ प्रशासनिक प्रक्रिया नहीं, बल्कि पारदर्शिता, निष्पक्षता और समान अवसर के सिद्धांतों की नींव होती है जब कोई अधिकारी वर्षों तक एक ही स्थान पर पदस्थ रहता है तो यह न केवल नीति की अवहेलना है बल्कि अन्य योग्य अधिकारियों के अधिकारों का भी हनन है

चितरंगी स्वास्थ्य केंद्र में डॉ. भूपेंद्र सिंह की लंबी तैनाती यही संकेत देती है कि नियमों की पालना में ढिलाई बरती जा रही है यदि कोई अधिकारी कार्यकुशल है तो उसे अन्य स्थानों पर भी सेवा का अवसर दिया जाना चाहिए ताकि उसका अनुभव व्यापक स्तर पर लाभ पहुंचा सके स्थानांतरण न होने की स्थिति में यह संदेह स्वाभाविक है कि कहीं कोई व्यक्तिगत प्रभाव या राजनीतिक संरक्षण तो काम नहीं कर रहा यह स्थिति स्वास्थ्य विभाग की साख पर भी आंच ला सकती है स्वास्थ्य जैसी संवेदनशील सेवा में जब पारदर्शिता और नियमों की अनदेखी होती है तो उसका असर सीधे आम जनता की सेवा गुणवत्ता पर पड़ता है अतः आवश्यक है कि शासन इस प्रकरण की निष्पक्ष जांच कर न केवल नियमों को सख्ती से लागू करे बल्कि यह भी सुनिश्चित करे कि कोई भी व्यक्ति नीति से ऊपर न हो

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