
आज डॉक्टर राम मनोहर लोहिया की जयंती मनाई गई समस्तीपुर
आज दिनांक 23 मार्च क़ो मोरवा प्रखंड के लसकारा मे राष्ट्रीय लोक मोर्चा के बैनर तले जिलाध्यक्ष विनोद चौधरी निषाद के अध्यक्षता मे समाजवादी विचारधारा के अनुयायी डॉ राममनोहर लोहिया की जयंती मनाई गई। डॉ राममनोहर लोहिया अपनी प्रखर देशभक्ति और तेजस्वी समाजवादी विचारों के कारण वह अपने समर्थकों के साथ ही अपने विरोधियों के मध्य भी अपार सम्मान हासिल किया।
राममनोहर लोहिया का जन्म 23 मार्च 1910 को फैजाबाद में हुआ था। उनके पिताजी हीरालाल पेशे से अध्यापक व हृदय से सच्चे राष्ट्रभक्त थे। उनके पिताजी गांधीजी के अनुयायी थे। जब वे गांधीजी से मिलने जाते तो राम मनोहर को भी अपने साथ ले जाया करते थे।
इसके कारण गांधीजी के विराट व्यक्तित्व का उन पर गहरा असर हुआ। पिताजी के साथ 1918 में अहमदाबाद कांग्रेस अधिवेशन में पहली बार शामिल हुए। वे सुविधापूर्ण जीवन के स्थान पर जंग-ए-आजादी के लिए अपनी जिंदगी समर्पित कर दी। डॉ. लोहिया मानव की स्थापना के पक्षधर समाजवादी थे। वह समाजवादी भी इस अर्थ में थे कि, समाज ही उनका कार्यक्षेत्र था और वह अपने कार्यक्षेत्र को जनमंगल की अनुभूतियों से महकाना चाहते थे। वह चाहते थे कि व्यक्ति-व्यक्ति के बीच कोई भेद, कोई दुराव और कोई दीवार न रहे। सब जन समान हो, सब जन का मंगल हो।उन्होंने सदा ही विश्व-नागरिकता का सपना देखा था। वह मानव-मात्र को किसी देश का नहीं बल्कि विश्व का नागरिक मानते थे। जनता को वह जनतंत्र का निर्णायक मानते थे। डॉ. लोहिया अक्सर यह कहा करते थे कि उन पर केवल ढाई आदमियों का प्रभाव रहा, एक मार्क्स का, दूसरे गांधी का और आधा जवाहरलाल नेहरू का।स्वतंत्र भारत की राजनीति और चिंतन धारा पर जिन गिने-चुने लोगों के व्यक्तित्व का गहरा असर हुआ है, उनमें डॉ. राममनोहर लोहिया और जयप्रकाश नारायण प्रमुख रहे हैं। भारत के स्वतंत्रता युद्ध के आखिरी दौर में दोनों की भूमिका बड़ी महत्वपूर्ण रही है।
1933 में मद्रास पहुंचने पर लोहिया गांधीजी के साथ मिलकर देश को आजाद कराने की लड़ाई में शामिल हो गए। इसमें उन्होंने विधिवत रूप से समाजवादी आंदोलन की भावी रूपरेखा पेश की। सन् 1935 में उस समय कांग्रेस के अध्यक्ष रहे पंडित नेहरू ने लोहिया को कांग्रेस का महासचिव नियुक्त किया। बाद में अगस्त 1942 को महात्मा गांधी ने भारत छोडो़ आंदोलन का ऐलान किया जिसमें उन्होंने बढ़चढ़ कर हिस्सा लिया और संघर्ष के नए शिखरों को छूआ। जयप्रकाश नारायण और डॉ. लोहिया हजारीबाग जेल से फरार हुए और भूमिगत रहकर आंदोलन का शानदार नेतृत्व किया। लेकिन अंत में उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया और फिर 1946 में उनकी रिहाई हुई
1946-47 के वर्ष लोहिया की जिंदगी के अत्यंत निर्णायक वर्ष रहे। आजादी के समय उनके और पंडित जवाहर लाल नेहरू में कई मतभेद पैदा हो गए थे, जिसकी वजह से दोनों के रास्ते अलग हो गए। बाद के दिनों में 12 अक्टूबर 1967 को लोहिया का 57 वर्ष की आयु में देहांत हो गया। मौक़े पर विभा देवी पूर्व जिलापार्षद, प्रदेश महासचिव देवनारायण सिंह, देवशंकर राय, कमल कुमार राम, संजय चौधरी निषाद, मो बशीर, मो दानिस, सुरेश कुमार राम, जयदेव राय रामानंद सिंह, राज निषाद, अर्जुन मण्डल, नागदेव मण्डल, अमरजीत कुमार, अनिल सिंह कुशवाहा, अरुण कुमार, डॉ बलराम सिंह, प्रेमलाल सिंह, कमलकिशोर शर्मा, भरत पासवान, कृष्णदेव साह, द्वारिका प्रसाद गुप्ता, सीताराम चौधरी, रणधीर कुमार राय, सुजीत पटेल, सुरेश प्रसाद सिंह, मनोज कुमार राम, चंद्रशेखर राय, मनोरंजन सिंह, रामप्रवेश ठाकुर, राजेश कुमार चौधरी, रंजीत राय, पप्पू कुमार राय संघर्ष कुमार सहित दर्ज़नों लोग उपस्थित थे।