
शीतला सप्तमी (शैली सातम) पर सोनकच्छ के शीतला माता मंदिर में रात्रि 12:00 बजे से खुले मंदिर के पाठ पूजन के लिए महिलाओं की लगी भीड़
देश भर में प्रतिवर्ष अनुसार होली के बाद रंग पंचमी और रंग पंचमी के २दिन बाद शीतला सप्तमी (शैली सातम)मनाई जाती है जिसमें महिलाओं द्वारा रात्रि में विभिन्न प्रकार का भजन प्रसाद बनाया जाता है। और महिला द्वारा ही शीतला माता की पूजा की जाती है। सोनकच्छ में भी प्रतिवर्ष अनुसार इस वर्ष भी शीतला माता मंदिर में महिलाओं द्वारा पूजा पाठ की गई। रात्रि 12:00 बजे पट खोलने के बाद माता के मंदिर के सामने महिलाओं की लगी भीड़। अन्य प्रकार की प्रसाद का चढ़या भोग हिंदू धर्म के अनुसार मान्यताएं।शीतला सप्तमी हिन्दु ओं का एक त्योहार है जिसमें शीतला माता के व्रत और पूजन किये जाते हैं। ये होली सम्पन्न होने के अगले सप्ताह में बाद करते हैं। इसका पुजारी कुम्हार होता है। प्रायः शीतला देवी की पूजा चैत्र मास के कृष्ण पक्ष की सप्तमी तिथि से प्रारंभ होती है, लेकिन कुछ स्थानों पर इनकी पूजा होली के ७ दिन ही की जाती है।शीतला माता की पूजा।भगवती शीतला की पूजा का विधान भी विशिष्ट होता है। शीतलाष्टमी के एक दिन पूर्व उन्हें भोग लगाने के लिए बासी खाने का भोग यानि बसौड़ा तैयार कर लिया जाता है। अष्टमी के दिन बासी पदार्थ ही देवी को नैवेद्य के रूप में समर्पित किया जाता है और बाद में कुम्हार को समर्पित किया जाता है तत्पश्चात् भक्तों के बीच प्रसाद के रूप में वितरित किया जाता है। इस कारण से ही संपूर्ण उत्तर भारत में शीतलाष्टमी त्यौहार, बसौड़ा के नाम से विख्यात है। ऐसी मान्यता है कि इस दिन के बाद से बासी खाना खाना बंद कर दिया जाता है। ये ऋतु का अंतिम दिन होता है जब बासी खाना खा सकते हैं।