बिहारभाबुआ

बाबा साहेब अंबेडकर और महात्मा ज्योतिबाफुले दोनों ही दलित समाजी थे । इनका दलित समाज के उत्थान में बहुत योगदान हैं । साथ मे ब्राह्मण समाज की थोपी समाजिक कुरीतियों को सनातन धर्म की कुरूति मानकर सनातन समाज का उपहास किया हैं । जिससे इस्लाम और ईसाई को भारत मे प्रबलता मिली

अम्बेडकर और महात्मा ज्योतिबा फुले की आर्य पर मदभेद

अम्बेडकर और फूले दोनों ही एक ही समाज थे । पर दोनों की समझ बुझ में बड़ा फर्क तब एक खुद की सोच समझ रखतें तो एक अंग्रेजों की समझ और सोच से जीवन यापन कर रहें थे ।और भारत समाज के जहर घोल रहें थे ।कितनी बड़ी बिडम्बना हैं । गैर सनातनी विचार वाले दो महान पुरुष मीले भारत के दलित समाज को । दोनों ही पश्चिमी दक्षिण राज्य महाराष्ट्र के थे । महाराष्ट्र में दलित समाज की अत्यधिक संख्या थी और वे समृद्ध भी थे , धन संपदा में उतर भारत के दलित समाज थे । उतर भारत के दलित समाज मे बहुत सारे सनातन सन्त हुए किसमे सबसे प्रसिद्ध सन्त शिरोमणि। रविदास जी हुए । पर अम्बेडकर और फूले जैसे नही थे । फूले को अंग्रेजों से पता चला कि आर्य उर्फ ब्राह्मण ईरान उर्फ मध्य एशिया से आये थे । फूले के बाद अम्बेडकर जी हुए । जो बड़े ज्ञानी और तीक्ष्णबुद्धि वाले थे । देश दुनिया घुमा उसके बाद उन्हें यह पता चला कि आर्य भारत के ही थे बाहरी नही । इस लिए आर्य देशी थे विदेशी नही । अब यह क हना गलत नही होगा कि फूले जो कुछ भी लिखा या बोला वो सभी अंग्रेज के कहे नुसार लिखा । अर्थात फूले अंग्रेजों की बढ़ चढ़कर गुलामी और चाटुकारिता की ।

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