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कोटा रंगबाड़ी के बालाजी का इतिहास

कोटा /शहर में रंगबाड़ी बालाजी का प्राचीन मंदिर श्रद्धालुओं की गहरी आस्था का केंद्र है, मध्यकाल में यह स्थान प्राकृतिक छठा से संपन्न था, यहां पर प्राचीन महलों के खंडहर भी है, जो खींची राजवंश के शासको के माने जाते हैं, मंदिर परिसर में करीब 58 कुंड थे, जिनमें से अधिक नष्ट हो गए है, यह स्थान कभी कोटा राज्य के शासको के आमोद प्रमोद का प्रमुख स्थान था, कोटा दरबार राव जगत सिंह वर्षा ऋतु में कहीं बार अपनी रानियां व नौकर चकारो के साथ यहां आए करते थे, उनके शासनकाल में ही एक साधु यहां आकर रहने लगा था, उसने राव जगतसिंह की बीमार रानी को स्वस्थ कर दिया था, तब जगत सिंह ने साधु के कहने पर यहां मंदिर बनवाकर हनुमान प्रतिमा की स्थापना कराई थी, कोटा दरबार राव किशोरसिंह प्रथम ने यहां कई अनुष्ठान कराए मनौती पूर्ण होने पर कुडों का निर्माण कराया था, महाराज दुर्जनशाल सिंह के शासनकाल में दशहरे पर रंगबाड़ी बालाजी की सवारी निकाली जाती थी, जो कोटा महाराव के पूजन की रस्म के बाद राजसी वैभव के साथ कोटगढ़ पैलेस से रंगबाड़ी तक जाया करती थी, महाराव उम्मेंदसिंह द्वितीय के शासनकाल में बालाजी के मंदिर का नवनिर्माण किया गया था, पूजा पद्धति जो रियासत काल में तय की गई थी उसी अनुसार होती आई है,

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