सलूंबर: मेवाड़ चावंड के प्रसिद्ध कटावला मठ के महंत हितेश्वरानंद सरस्वती को प्रयागराज में आयोजित एक धार्मिक समारोह के दौरान महामंडलेश्वर की उपाधि से सम्मानित किया गया। यह उपाधि पाने वाले वे मेवाड़ के पहले संन्यासी बन गए हैं। 26 जनवरी को उन्हें यह गौरव प्राप्त हुआ, जिसे लेकर मेवाड़ और आसपास के क्षेत्र में हर्ष का माहौल है।
**कौन हैं हितेश्वरानंद सरस्वती?**
हितेश्वरानंद सरस्वती का जन्म पाली जिले के सुमेरपुर के पास चाणोद गांव में हुआ था। उन्होंने साधना और समाज सेवा के प्रति अपनी निष्ठा के लिए कोरोना काल में अपनी संपत्ति आदिवासी समुदायों को दान कर दी थी। वर्तमान में वे कटावला मठ के पीठाधीश्वर हैं और धार्मिक-सामाजिक कार्यों में सक्रिय हैं।
**महामंडलेश्वर की उपाधि का महत्व**
सनातन परंपरा में महामंडलेश्वर का स्थान अत्यंत प्रतिष्ठित है। यह पद शंकराचार्य के बाद दूसरा सबसे बड़ा माना जाता है। महामंडलेश्वर को न केवल धार्मिक नेतृत्व मिलता है, बल्कि समाज कल्याण और अध्यात्म के प्रसार में भी उनकी बड़ी भूमिका होती है।
**कटावला मठ का ऐतिहासिक महत्व**
कटावला मठ, जो लगभग 550 साल पुराना है, मेवाड़ की धार्मिक और सांस्कृतिक धरोहर का प्रतीक है। महंत हितेश्वरानंद सरस्वती ने इस मठ के माध्यम से युवा पीढ़ी को नशामुक्ति, पारिवारिक मूल्यों और आध्यात्मिकता की ओर प्रेरित किया है।
**मठ से लेकर महामंडलेश्वर तक का सफर**
हितेश्वरानंद सरस्वती के महामंडलेश्वर बनने को मेवाड़ के लिए गौरव का विषय माना जा रहा है। उनकी समाज सेवा और आध्यात्मिक योगदान को इस उपाधि के माध्यम से मान्यता मिली है। उन्होंने महामंडलेश्वर बनने के बाद मानव कल्याण के कार्यों को और अधिक बढ़ाने का संकल्प लिया है।
महामंडलेश्वर हितेश्वरानंद सरस्वती ने युवाओं से नशा मुक्त जीवन अपनाने और समाज में सकारात्मक बदलाव लाने का आह्वान किया है। उनका कहना है कि अध्यात्म और सेवा के माध्यम से समाज को एक नई दिशा दी जा सकती है।