स्वामी विवेकानंद एक महान विचारक-शिवानी जैन एडवोकेट
ऑल ह्यूमन सेव एंड फॉरेंसिक फाउंडेशन डिस्टिक वूमेन चीफ शिवानी जैन एडवोकेट ने कहा कि
स्वामी विवेकानंद का जन्म 12 जनवरी 1863 को कलकत्ता में हुआ था। उनका असली नाम नरेंद्र दत्त था। बचपन से ही वे पढ़ने और चीज़ों को समझने में बहुत अच्छे थे। साथ ही, वे बचपन से ही बहुत जिज्ञासु थे। ऐसा कहा जाता है कि वे एक बार पढ़ने के बाद ही पूरी किताब याद कर लेते थे।
बचपन से ही विवेकानंद को ईश्वर को जानने की इच्छा थी। इस इच्छा को दूर करने के लिए विवेकानंद ने महाऋषि देवेंद्र नाथ से पूछा “क्या आपने कभी ईश्वर को देखा है?” जब महाऋषि देवेंद्र ने यह सवाल सुना तो वे इस पर विचार करने लगे और उन्होंने स्वामी विवेकानंद को उत्तर पाने के लिए रामकृष्ण परमहंस के पास जाने को कहा। बाद में स्वामी विवेकानंद ने रामकृष्ण परमहंस को अपना गुरु चुना। मात्र 25 वर्ष की आयु में उन्होंने संन्यासी धर्म अपना लिया और बाहरी दुनिया के प्रति अपना मोह त्याग दिया।
थिंक मानवाधिकार संगठन एडवाइजरी बोर्ड मेंबर डॉ कंचन जैन ने कहा कि किसी भी देश के विकास के लिए युवाओं को रीढ़ की हड्डी माना जाता है, ठीक वैसे ही जैसे अगर शरीर की रीढ़ की हड्डी क्षतिग्रस्त हो जाए तो शरीर सीधा खड़ा नहीं रह सकता, उसी तरह अगर देश के युवा किसी गलत रास्ते पर चलने लगें तो देश की समृद्धि में कई रुकावटें आएंगी।
मां सरस्वती शिक्षा समिति के प्रबंधक डॉ एच सी विपिन कुमार जैन, संरक्षक आलोक मित्तल एडवोकेट, ज्ञानेंद्र चौधरी एडवोकेट, डॉ आरके शर्मा, निदेशक डॉक्टर नरेंद्र चौधरी, बृजेश शुक्ला एडवोकेट, राकेश दक्ष एडवोकेट, शार्क फाउंडेशन की तहसील प्रभारी डॉ एच सी अंजू लता जैन, बीना एडवोकेट आदि ने कहा स्वामी विवेकानंद का अनमोल विचार यह था कि उठो, जागो और तब तक मत रुको जब तक लक्ष्य प्राप्त न हो जाए।”
शिवानी जैन एडवोकेट
डिस्ट्रिक्ट वूमेन चीफ