छत्तीसगढ़जशपुर

पूर्णिमा स्व सहायता समूह संचालक पर लगा पैसा हड़पने का आरोप

Purnimasah

रिपोर्टर- गुलाब यादव

एंकर- जशपुर जिले में बगीचा विकासखण्ड के पूर्णिमा स्व सहायता समूह के संचालक पर बुजुर्ग रसोईया ने बेवकूफ बनाकर परेशान करने का लगाया है आरोप बुजुर्ग रसोईया ने लकड़ी का पैसा पाने के चक्कर में पहुँचा बीईओ कार्यालय वहां से पूरा बात पता चलता है कि समूह के खाते पर चला गया है पैसा बेचारे रसोईया ने मुँह लटकाते हुए वापस लौट चले आते हैं।

दरसअल मामला प्राथमिक शाला घोरडेगा का है जहां एक बुजुर्ग लाल मोहन नामक रसोइया ने कड़ी मेहनत के बाद लकड़ियों को खोज कर स्कूल का चूल्हा जलाता है और नन्हें बच्चों का मध्यान भोजन बनाकर खिला पता है,लेकिन आज वही मजदूरी का पैसा पाने के लिए दर दर भटक रहा है बुजुर्ग मग़र भनक तक नहीं लग रहा था कि कहां तक रुकी हुई है पैसा, ऐसा नहीं है कि समूह चलाने वाला दूर दराज का है एक दो ही किलोमीटर के अन्तराल पर बसे हुए हैं औऱ एक समाज के लोग हैं हर हमेसा का भी होता है मुलाकात मग़र यह भी नहीं बताया गया बुजुर्ग रसोईया को पैसा समूह का खाता पर डल चुका है बल्कि रसोइया को यह कहा जाता था कि हमें नहीं पता कि कहां लटका हुआ है तुम्हारा पैसा समझ में नहीं आ रहा आखिरकार समझ में कैसे आ सकती है क्योंकि बुजुर्ग रसोईया को कौन बताता जो मजदूरी मिलता लेकिन एक दिन बात बात पे रसोइया ने शिक्षकों से चर्चा करने लगा तब शिक्षकों ने कहा कि एक बार जाओ बीईओ कार्यालय जब नहीं मिल रहा है तो बीईओ कार्यालय जाकर पता कर लो आखिर में एक दिन रसोईया ने जाता है बीईओ कार्यालय और अपना पूरा दुखड़ा सुनता है तब वहीं विकासखण्ड शिक्षा अधिकारी ने पूरी बात बताते हैं कि मध्यान भोजन के लिए समूह वाले को लकड़ी देना होता है तो फिर तुम क्यों लकड़ी लाते थे लकड़ी का जिमेदारी समूह को दी गई है और पैसा समूह के खाते में कबका ही चला जा चुका है,समूह वाले से जाकर ले लो लकड़ी का पैसा बेचारे रसोईया चले आते हैं वापस मुँह लटकाते हुए फिर,असलियत तो ये था कि किभी समूह वाले के द्वारा लकड़ी तो दिया नहीं जाता था तो क्या ऐसा ही छोड़ थोड़ी न दिया जाता आखिर रसोईया कहिं से खोज कर लकड़ी लाता फिर मध्यान भोजन खिला पता था,अंत में जब समूह वाले के पास जाकर बीईओ का कहा बातों को बात बताई तब कहीं बड़ी मुश्किल से कबूल कर कहा जाता है कि हां ठीक है एक दिन चले आ जाना दे दिया जायेगा लकड़ी का पैसा ऐसा ही कि बार आज कल करते हुए दिन गुजर जा रहा लेकिन आज तक नहीं मिल पा रहा लकड़ी का पैसा,

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