
ओलचिकी लिपि का तीन दिवसीय शताब्दी समारोह समाप्त हो गया है।
रायरंगपुर,मयूरभंज 15/05/2025
पंडित रघुनाथ मुर्मू की 120वीं जयंती और ओलचिकी लिपि के शताब्दी वर्ष के उपलक्ष्य में आयोजित तीन दिवसीय महोत्सव डांडबोस गांव में धूमधाम से संपन्न हो गया।
तीसरे दिन झारखंड के शिक्षा मंत्री रामदास सोरेन और ओडिशा के पूर्व शिक्षा मंत्री सुदाम मरांडी अतिथि के रूप में पहुंचे। अतिथियों ने सबसे पहले गुरु गोमके पंडित रघुनाथ मुर्मू की प्रतिमा पर माल्यार्पण किया, तत्पश्चात गुरु गोमके के पैतृक निवास का दौरा किया तथा कपी बुरु में उनके ध्यान स्थल और समाधि स्थल पर श्रद्धांजलि अर्पित की।
गुरुगोमके पंडित रघुनाथ मुर्मू हेरिटेज ट्रस्ट द्वारा आयोजित समारोह में पूर्व शिक्षा मंत्री श्री सुदाम मरांडी मुख्य अतिथि के रूप में शामिल हुए. रायरंगपुर उपजिला प्रमुख अहंवान पटनायक, जिला पार्षद परेश चंद्र मुंडा, जेमामणि सुंधी, ममता मोहन्तो , तिरिंग ब्लॉक अध्यक्ष तिया समद भी उपस्थित थे। इस अवसर पर पूर्व मंत्री विशेश्वर टुडू, पूर्व सांसद रामचंद्र हांसदा, पूर्व विधायक प्रह्लाद पूर्ति, पूर्व विधायक लक्ष्मण हेंब्रम भी उपस्थित थे तथा उन्होंने कहा कि पंडित रघुनाथ मुर्मू के जीवन एवं साहित्यिक योगदान के कारण ही पूरे विश्व में आदिवासी संताल समुदाय एकजुट हुआ है, वहीं आदिवासियों की भाषा, संस्कृति एवं परंपराएं संरक्षित एवं सुदृढ़ हुई हैं।
इसी प्रकार दंड बोस में पारसी सिंह चांदो महल माधवा, दंड बोस, असेका, रायरंगपुर एवं पंडित रघुनाथ मुर्मू मेमोरियल संयुक्त अलचिकी शताब्दी समारोह समिति द्वारा आयोजित आमसभा में जनजातीय समुदाय को संबोधित करते हुए झारखंड के शिक्षा मंत्री श्री सोरेन ने कहा कि पंडित रघुनाथ मुर्मू ने संताली समुदाय को अपनी लिपि ‘ओलचिकी’ देकर विशिष्ट सांस्कृतिक पहचान दी। उन्होंने घोषणा की कि झारखंड सरकार ने न केवल एक आदिवासी विश्वविद्यालय की स्थापना की है, बल्कि पंडित मुर्मू की जयंती को राज्य अवकाश के रूप में भी मान्यता दी है। कार्यक्रम के मंच से वक्ताओं ने ओलची लिपि के ऐतिहासिक महत्व, पंडित मुर्मू की जीवनी और उनके साहित्यिक योगदान पर विस्तार से चर्चा की। उन्होंने कहा कि पंडित मुर्मू न केवल एक लेखक थे, बल्कि एक समाज सुधारक, साहित्यकार और आदिवासी चेतना के प्रवर्तक भी थे। समारोह में झामुमो के प्रदेश अध्यक्ष अंजनी सोरेन, पूर्व विधायक लक्ष्मण टुडू, साईबाबा सुशील हांसदा, भीमवर मुर्मू, शंख बास्के, सागेन पूर्ति, झारखंड एएसईसी के अध्यक्ष सुभाष मरांडी और संताली लेखक पीतांबर हांसदा समेत कई पटकथा लेखक और जन प्रतिनिधि उपस्थित थे. यह त्रिभुवन शताब्दी समारोह आदिवासी एकता और भाषा एवं सांस्कृतिक विरासत के संरक्षण का प्रतीक बन गया।