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रिपोर्टर संजय जैन बड़ोद आगर मालवा
*एक विवाह ऐसा भी,विवाह प्रेरणा बनकर रह गया*
बड़ौद- नगर की गलियों में हल्की सर्द हवाओं के बीच शहनाइयों की मधुर धुन गूंज रही थी। हर ओर खुशियों का माहौल था। यह अवसर था हेमसिंह राजपूत जी की बेटी श्रुति के विवाह का। पर यह विवाह केवल पारंपरिक रस्मों का ही नहीं, बल्कि समाज में एक नई सोच का बीज बोने वाला था।
हेमसिंह राजपूत, जिनके सादगी भरे जीवन में समाज की भलाई का गहरा स्थान था, उन्होंने इस शुभ अवसर को केवल अपने परिवार तक सीमित नहीं रखा। उन्होंने न केवल अपने रिश्तेदारों और मित्रों को आमंत्रित किया, बल्कि उन लोगों को भी आदरपूर्वक बुलाया जो अक्सर समारोहों में नजरअंदाज कर दिए जाते हैं—सेवा प्रदाता, जो समाज के हर छोटे-बड़े कार्यों में अपनी भूमिका निभाते हैं।
विवाह का मुख्य आकर्षण वह क्षण था जब सेवा प्रदाताओं को मंच पर बुलाया गया। हेमसिंह जी और उनकी पत्नी ने सेवा प्रदाताओं का न सिर्फ कपड़े और श्रीफल देकर सम्मान किया, बल्कि उनके चरण स्पर्श कर आभार व्यक्त किया। यह दृश्य देखकर वहां उपस्थित सभी लोग भावविभोर हो उठे। समाज के प्रमुख लोग, जिनमें धर्मेंद्रसिंह मौर्य, सुंदर शर्मा, रामनारायण देवड़ा और अन्य गणमान्य उपस्थित थे, सभी इस पहल की सराहना कर रहे थे।
हेमसिंह जी ने मुस्कुराते हुए कहा, “ये लोग हमारे जीवन का महत्वपूर्ण हिस्सा हैं। हमारे सुख-दुख के साथी हैं। इनके बिना किसी भी आयोजन की कल्पना नहीं की जा सकती। इन्हें सम्मान देना हमारा सौभाग्य है।”
विवाह समारोह में न सिर्फ रीति-रिवाज निभाए गए, बल्कि सभी ने मिलकर सामूहिक भोज का आनंद लिया। वहां न कोई ऊँच-नीच थी, न कोई भेदभाव। हर कोई एक ही पंक्ति में बैठा, एक ही थाली में भोजन करता हुआ, समाज में एक नई लहर का अनुभव कर रहा था—एकता, समानता और सम्मान की लहर।
यह विवाह केवल श्रुति और उसके जीवनसाथी के मिलन का पर्व नहीं था, बल्कि यह एक नई सोच, एक नई परंपरा का आरंभ था। ऐसा विवाह, जहां खुशियों के साथ-साथ इंसानियत का भी उत्सव मनाया गया।
सचमुच, यह विवाह एक प्रेरणा बनकर रह गया—एक विवाह ऐसा भी!