*उदयपुर में आयोजित चिंतन शिविर में देश के विभिन्न राज्यों से आए महिला बाल विकास मंत्री के सामने प्रदेश की केबिनेट मंत्री निर्मला भूरिया ने दिया प्रेजेंटेशन, जनजातीय बहुल क्षेत्रों के लिए मोटी आई मॉडल को बताया वरदान*
झाबुआ के 1950 गंभीर कुपोषित बच्चों के पोषण स्तर को सामान्य बनाने के लिए किए जा रहे प्रयासों के लिए झाबुआ जिला प्रशासन का जिक्र
रिपोर्टर = भव्य जैन
झाबुआ 12 जनवरी 2025 । राजस्थान के उदयपुर में केंद्रीय महिला बाल विकास मंत्रालय द्वारा आयोजित चिंतन शिविर में झाबुआ का मोटी-आई मॉडल छा गया। शिविर के दूसरे दिन प्रदेश की केबिनेट मंत्री निर्मला भूरिया ने देश भर के महिला बाल विकास मंत्रियों के सामने आदिवासी अंचल में किए जा रहे इस नवाचार का जिक्र किया। इस दौरान उन्होंने इस मॉडल की सूत्रधार झाबुआ जिला प्रशासन का भी खास तौर पर जिक्र किया।
मंत्री सुश्री भूरिया ने कहा- मैं आदिवासी अंचल झाबुआ से आती हूं, जहां बच्चो में कुपोषण के बहुत सारे स्थानीय कारण मौजूद है। वैसे तो पूरे मप्र में कुपोषण निवारण के लिए मुख्यमंत्री बाल आरोग्य संवर्धन कार्यक्रम प्रभावी ढंग से चलाया जा रहा है, किंतु जनजातीय बाहुल्य इलाकों की विशेष आवश्यकताओं को देखते हुए मेरे जिले झाबुआ में मोटी आई जैसा नवाचार किया गया है। इस नवाचार को स्थानीय कलेक्टर नेहा मीना के द्वारा महिला बाल विकास विभाग, स्वास्थ्य व आयुष विभाग के संयुक्त सहयोग से संचालित किया जा रहा है।
मंत्री सुश्री भूरिया ने बताया मोटी आई जिसे बड़ी मां भी कहा जाता है उन्हें विशेष प्रशिक्षण दिया गया।मोटी-आई के द्वारा कुपोषित बच्चों की आयुर्वेद के अनुसार तेल से नियमित मालिश की जा रही है साथ ही स्थानीय सहयोग से बच्चों को विशिष्ट पौष्टिक आहार दिया जा रहा है। ये मोटी आई उन बच्चों के लिए वरदान बन गई है जिनके माता-पिता पलायन कर बच्चों को घर के बुजुर्ग के पास छोड़ जाते है। इन ‘मोटी-आई’ की बदौलत आज बिना किसी बजट के झाबुआ जिले में 1950 गंभीर कुपोषित बच्चों के पोषण स्तर को सामान्य बनाने के लिए किए जा रहे एकजुट प्रयासों के सकारात्मक परिणाम सामने आए हैं। अब तक करीब 600 बच्चे गंभीर कुपोषण से उबरकर सामान्य पोषण की श्रेणी में आ गए हैं, जो अभियान के सकारात्मक परिणाम दिखते है। आने वाले दिनों में हम झाबुआ जिले को ‘कुपोषण मुक्त अभियान’ के मॉडल के रूप में प्रस्तुत करेंगे।
इस प्रेजेंटेशन के दौरान राजस्थान के मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा, केंद्रीय महिला बाल विकास मंत्री अन्नपूर्णा देवी, केंद्रीय राज्यमंत्री सावित्री ठाकुर, राजस्थान की उप मुख्यमंत्री दीया कुमारी सहित विभिन्न राज्यों से आए महिला बाल विकास मंत्री मौजूद थे।
मंत्री निर्मला भूरिया ने गिनाई प्रदेश की ये सात उपलब्धियां-
1. प्रधानमंत्री मातृ वंदना योजना में हम लगातार कई वर्षों से देश में पहला स्थान बनाए हुए है। इसके लिए सतत रूप से अभियान के पर्यवेक्षण और फॉलो-अप को सुदृढ़ किया गया है।
2. मप्र में पहली बार आंगनवाड़ी कार्यकर्ताओं और सहायिकाओं की नियमित एवं पारदर्शितापूर्ण प्रणाली से नियुक्ति के लिए ऑनलाइन पोर्टल लॉन्च किया गया। इसी पोर्टल के माध्यम से प्रदेश में 12,670 मिनी आंगनवाड़ी से उन्नयन होकर बनी आंगनवाड़ी केंद्रों में सहायिकाओं की पद पूर्ति की प्रक्रिया प्रारंभ की जा रही है।
3. आंगनवाड़ी केंद्र के नियमित एवं समय से संचालन के लिए “20 मीटर की जिओफेंसिंग”‘ आधारित ऑनलाइन उपस्थिति प्रक्रिया को प्रारंभ किया गया है।
4. केंद्र स्तर पर प्रतिदिन बच्चों को दिए जाने वाले नाश्ते और गर्म पका भोजन दिए जाने के समय और लाभान्वितों की संख्या की जानकारी के लिए लाइव ग्रुप फोटो से हेड काउंट आधारित मॉड्यूल लागू किया गया है।
5. प्रधानमंत्री जन मन अंतर्गत आदिवासी समुदाय के स्थानीय परिवेश के अनुसार विशिष्ट आंगनवाड़ी भवन को डिजाइन किया गया। जिसकी भारत सरकार द्वारा भी सराहना की गई है।
6. मप्र ने आंगनवाड़ी भवन निर्माण के प्रत्येक स्तर की निगरानी के लिए ऑनलाइन ट्रैकिंग मॉड्यूल प्रारंभ किया है।
7. प्रदेश में कुपोषण के स्तर को सुधारने के लिए जिला पोषण समिति की नियमित एवं प्रभावी बैठकों के लिए विभागीय पोर्टल पर ऑनलाइन जिला पोषण समिति डैशबोर्ड तैयार किया गया है। यह पोषण ट्रैकर एवं संपर्क ऐप से प्राप्त मासिक जानकारियों के आधार पर बना है।
मप्र की ओर से दिए दो सुझाव-
महिला एवं बाल विकास मंत्री निर्मला भूरिया ने मप्र की ओर से दो सुझाव भी रखे।
1. पहला महत्वपूर्ण बिन्दु प्रशिक्षण केंद्र का था। मंत्री सुश्री भूरिया ने कहा- पूर्व में आंगनवाड़ी कार्यकर्ताओं और सहायिकाओं की प्रशिक्षण की एक सुनिश्चित व्यवस्था संचालित थी। जिसमे व्यवस्थित रूप से प्रशिक्षण केंद्र के माध्यम से नवीन नियुक्त कार्यकर्ताओं एवं सहायिकाओं का नियमित मूलभूत प्रशिक्षण तथा शेष को रिफ्रेशर प्रशिक्षण दिया जाता था। यह उनके काम की गुणवत्ता को बढ़ाते थे, लेकिन अब जबकि विभिन्न गतिविधियां जोड़ी जा रही है लेकिन हमारे प्रशिक्षण केंद्र बंद है और प्रशिक्षण प्रणाली है ही नहीं। मेरा आग्रह है कि इन प्रशिक्षण केंद्रों को पुनः चालू कर कार्यकर्ताओं और सहायिकाओं के प्रशिक्षण का एक सुनिश्चित कैलेंडर जारी किया जाए।
2. मंत्री सुश्री भूरिया ने दूसरा सुझाव यह दिया कि वर्तमान में जनसंख्या के मान से नए प्रोजेक्ट बनाए जाने का मापदंड प्रभावी हैं, जबकि हम सभी जानते हैं कि आदिवासी अंचल में कम जनसंख्या में आंगनवाड़ी केंद्र खोले जाते हैं। यही कारण है कि मेरे प्रदेश में अनेक ऐसी बाल विकास परियोजना है, जहां 500 से भी ज्यादा आंगनवाड़ी है। इन आंगनवाड़ियों को प्रबंधन करना एक बड़ी चुनौती है। वास्तव में परियोजना की इकाई, आंगनवाड़ी केंद्रों के प्रबंधन का विषय है न की जनसंख्या का। इसलिए 150 से 200 आंगनवाड़ियों पर एक परियोजना को मंजूरी दी जाने की अत्यंत आवश्यकता है।