रिपोर्टर देवेन्द्र कुमार जैन भोपाल मध्यप्रदेश
वृक्षों के प्रति अद्भुत प्रेम और समर्पण के लिए “वृक्ष माता” के रूप में जानी जाने वालीं तुलसी गौड़ा, 86 की उम्र में इस संसार को अलविदा कह गईं और उनके लगाए लाखों पेड़-पौधों ने अपनी माता को खो दिया। तुलसी अम्मा ने हजारों पौधों को न सिर्फ रोपा, बल्कि एक मां की ही तरह देखभाल की।उन्होंने एक साधक की तरह जीवन जीया और आने वाली पीढ़ियों के लिए धरती को हरा-भरा बनाने में आजीवन जुटी रहीं। 2021 में तुलसी गौड़ा जब पद्मश्री जैसा प्रतिष्ठित पुरस्कार लेने राष्ट्रपति के समक्ष पहुंचीं, तो उनकी सादगी ने सबको आकर्षित किया था। वह पद्म सम्मान लेने नंगे पांव, अपने पारंपरिक आदिवासी लिबास में आई थीं। कर्नाटक के होनाली गांव की रहने वाली तुलसी अम्मा कभी स्कूल नहीं गईं।लेकिन अपने अनुभव से उन्होंने पेड़-पौधों और वनस्पति का इतना ज्ञान था कि उन्हें “एनसाइक्लोपीडिया ऑफ़ फोरेस्ट” कहा जाने लगा।बचपन में पिता की मृत्यु, छोटी उम्र में शादी, और फिर पति को खो देने के बाद अपनी जिंदगी के दुखों और अकेलेपन को दूर करने के लिए, लगभग 60 साल पहले तुलसी अम्मा ने पेड़-पौधों का ख्याल रखना शुरू किया था। कर्नाटक के हलक्की जनजाति से ताल्लुक रखने वालीं तुलसी गौड़ा ने अपना पूरा जीवन पेड़ों को समर्पित कर दिया। वह कहती थीं यह मायने रखता है कि आपने कितने पेड़ लगाए, लेकिन उससे भी ज़्यादा ज़रूरी है उन छोटे नाज़ुक पौधों की देखभाल करना। मुख्य मंत्री डॉ मोहन यादव ने तुलसी अम्मा के चरणों में श्रद्धांजलि देते हुए अपने सोशल मीडिया अकाउंट पर लिखा पद्मश्री से सम्मानित, सुप्रतिष्ठित पर्यावरणविद् श्रीमती तुलसी गौड़ा के निधन से भारत के पर्यावरण संरक्षण की मुहिम में विशाल शून्यता उत्पन्न हुई है। बचपन से लेकर आज तक अपने अथक प्रयासों एवं प्रकृति प्रेम की भावना के साथ आपने अनगिनत पौधे लगाकर पर्यावरण को संरक्षित करने में अहम् योगदान दिया। पृथ्वी माँ की रक्षा के लिए निःस्वार्थ भाव से जंगलों को हरा-भरा बनाने के लिए समर्पित उनका जीवन सभी देशवासियों को पर्यावरण संरक्षण के लिए प्रेरित करता रहेगा और उनके द्वारा लगाए वृक्षों की शीतल छांव पर्यावरण के संरक्षण और संवर्धन हेतु सदैव प्रेरणा देती रहेगी।
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