राजनांदगांव। वर्तमान लोकसभा चुनाव में तमाम अनुकूल स्थिति के बावजूद अपने लोगों से खतरा होने से बाजी अप्रत्याशित रूप से पलट भी सकती है, अपनों से खतरा का मतलब भाजपा नेताओं एवं कार्यकर्ताओं से है बड़ी बात यह है कि यदि ऐसी स्थिति आई तो इसे साबित करना काफी मुश्किल होगा। यद्यपि एक नजर में यह कठिन एवं आश्चर्यजनक लगता है, लेकिन चुनावी राजनीति कब कौन सा करवट बदल ले इस संबंध में कुछ कहा नहीं जा सकता।
वस्तुत: मोदी लहर एवं मोदी की गारंटी के चलते भाजपा प्रत्याशी संतोष पांडे कुछ अधिक आत्मविश्वास से भरने के अलावा मुखर भी हो गए हैं इस मुखरता को यदि ठीक भी मान लिया जाए तो इस मुखरता के कारण यहां के स्थानीय छोटे – बड़े भाजपा नेता अपने को उपेक्षित महसूस कर रहे हैं तथा पार्टी अनुशासन के नाम पर मौन साधे हुए हैं हकीकत भी यही है कि कभी राजनांदगांव जिला मुख्यालय भाजपा की राजनीति का केंद्र रहते रही है यहां पर वरिष्ठ भाजपा नेता एवं चौकडी के नाम से प्रसिद्ध रही वहीं अशोक शर्मा ने भाजपा संगठन को चक चौबंध रखने के अलावा भाजपा कैडर को इतना स्थापित प्रदान किया.
जिसके बलबूते भाजपा के प्रदेश एवं केंद्रीय नेतृत्व में श्री शर्मा को सांसद का टिकट देने के अलावा संगठन में महत्वपूर्ण पद देकर उसके महत्व को स्वीकार भी किया था उनकी महत्ता के कारण ही उनके पुत्र नीलू शर्मा को भी पद – दायित्व मिलते रहा है लेकिन पिछले कुछ वर्षों से राजनीति का केंद्र कवर्धा जिला बना हुआ है यह स्थिति पूर्व मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह के पुत्र अभिषेक सिंह के सांसद बनने के बाद से ही बनते रही है। फिर भी राजनांदगांव के भाजपा नेताओं को यह आशा थी की इस बार नई पीढ़ी के भाजपा नेताओं (नीलू शर्मा) को तरजीह मिलेगी और उन्हें या तो संगठन में महत्वपूर्ण पद मिलेगा अथवा सांसद का टिकट मिल जाएगा लेकिन ऐसा नहीं हुआ वहीं वरिष्ठ भाजपा नेता खुबचंद पारख एवं पूर्व सांसद मधुसूदन यादव भी दौड़ में थे वहीं अभिषेक सिंह को भी दोबारा टिकट मिलने का लग रहा था लेकिन कवर्धा के ही संतोष पांडे टिकट के मामले में बाजी मार ले गए।
यहां तक कि उन्हें दूसरी बार भी टिकट मिल गया जबकि संतोष पांडे ने कोई बड़ा कार्य अपने 5 वर्षों के कार्यकाल में नहीं किया है हां संसद में वे अवश्य मुखर रहे है इसका भी प्रतिफल उन्हें दूसरी बार टिकट देने के रूप में मिला है तब से भाजपा के स्थानीय नए एवं पुराने नेता खुद को महत्व न मिलने से स्वयं को उपेक्षित महसूस कर रहे हैं।
ज्ञात हुआ है कि इस बार के संसदीय चुनाव में मोदी की गारंटी के जोश में प्रत्याशी संतोष पांडे यहां के भाजपा नेताओं को उतना महत्व नहीं दे रहे है और स्वयं के अलावा अपने कुछ खास लोगों को ही चुनाव की बागडौर दे रखे हैं ऐसी चर्चा है।
यही वजह है कि स्थानीय नेता इस बार के चुनाव में आत्मिक रूप से भाजपा प्रत्याशी के साथ नहीं जुड़ पाए है यह स्थिति संतोष पांडेय के हित में नहीं लग रही है क्योंकि इस बार उनका मुकाबला किसी सामान्य प्रत्याशी से न होकर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री भूपेश बघेल से है। अब देखना यह है कि संतोष पाण्डेय मोदी की गारंटी पर जनता कितनी मुहर लगाती है वहीं भूपेश बघेल भाजपा के इस गढ़ को किस तरह भेदने में कामयाब होते है
(रिपोर्टर_ शेखर ठाकुर (जिला प्रमुख)