
बच्चों को मुफ्त शिक्षा के अधिकार से बंचित कर रहा है प्राइवेट स्कूल
विजयीपुर गोपालगंज
बिहार एक बड़ी आबादी वाला प्रदेश है। इस आबादी को साक्षर बनाने का दारोमदार भी बिहार सरकार के ही कंधों पर है। बिहार के विद्यालयों के संचालन मे बिहार सरकार प्रतिवर्ष विभिन्न मदों में भारी भरकम राशि खर्च करती है। फिर भी इन विद्यालयों का प्रदर्शन निजी विद्यालयों की तुलना में कमजोर रहना चिंता का विषय है। शासन प्रशासन इसकी कमियां भी तलाश रहे हैं और पठन पाठन की गुणवत्ता पर भी ध्यान दे रहे हैं। इस बाबत राज्य सरकार जो प्रयास कर रही है वह सराहनीय कार्य है। राज्य स्तरीय टीम का गठन भी इसी प्रयास का हिस्सा है। यह टीम एक एक कर बिहार के सभी विद्यालयों का निरिक्षण भी कर रही है और किसी प्रकार की अनियमितता मिलने पर अनुशासनात्मक कार्रवाई भी कर रही है जो एक कारगर कदम माना जा सकता है।
पर क्या इतने से बिहार के विद्यालयों की शिक्षा गुणवत्तापूर्ण हो सकती है ? सच पूछिए तो नहीं। क्योंकि सरकारी तंत्र के शिक्षक हो, प्रखंड विकास पदाधिकारी हो,अंचल अधिकारी हो/ डाक्टर हो या समाज के जन प्रतिनिधियों का बच्चे हो इन सभी का बच्चे शहर के इंग्लिश मीडियम में पड़ते हैं यहां तक कि सरकारी मानसिकता को देखते हुए चापराशी के बच्चे भी निजी विद्यालयों में जाने के लिए मजबूर हैं, हलांकी शिक्षा विभाग के अपर सचिव के के पाठक के द्वारा कुछ सकारात्मक प्रयास किया गया लेकिन वह डाल डाल तो शिक्षक पात पात कहावत को चरितार्थ करते हुए ससमय विद्यालय का संचालन करते नजर तो जरूर आते हैं,और असर भी हुआ है लगभग सभी विद्यालयो में बच्चों के लिए बेंच, पेयजल, शौचालय जैसी सुविधाएं उपलब्ध कराई गई है,लेकिन मिड डे मिल के नाम पर आज भी बच्चों के जिंदगी से खिलवाड़ किया जा रहा है प्राइवेट कंपनियों द्वारा, विजयीपुर क्षेत्र में अनगिनत प्राइवेट स्कूलों का संचालन किया जाता है बिना किसी मान्यता एवं मानक को पालन करते हैं, शायद ही किसी विद्यालय का जिले से पंजीकरण नंबर प्राप्त हो, और शायद ही शिक्षा विभाग के प्रखंड स्तर से जिला स्तर के पदाधिकारियों का इस मुद्दे पर ध्यान गया भी होगा या ध्यान आकर्षित कराने का प्रयास किया गया होगा? लेकिन कुछ भी हो शिक्षा सामग्री पर 18 प्रतिशत जीएसटी लेने वाली सरकारें क्या सोचीं समझी साजिश के तहत बच्चों को मुफ्त शिक्षा अधिकार से दूर किया जा रहा है जिसकी समाज पर प्रतिकुल प्रभात पड़ना सुनिश्चित है, हलांकी वर्तमान समय में हमारे शिक्षक प्राइवेट स्कूलों के अपेक्षा ज्यादा शिक्षित एवं टाइलेंटेड है, बीते दिनों बिहार के सभी विद्यालयों में दीक्षांत समारोह का आयोजन किया गया था हमारे कुछ वरिष्ठ पत्रकार साथियों एवं वरिष्ठ अभिभावकों को सरकारी विद्यालयों में एक से बढ़कर एक होनहार छात्र छात्राओं को अपनी अपनी प्रतिभा को प्रदर्शन करते देखा गया जो काबिले तारीफ था इनके पीछे उनके वही सरकारी शिक्षकों कि उपलब्धियां थी लेकिन फिर हमारी मंशा सरकारी विद्यालयों के प्रति उदासीनता का ही है! 10/10 के कच्ची पक्की चारदीवारी में मुर्गी फार्म से बद्तर परिस्थितियों में संचालित है चौक-चौराहों पर प्राइवेट स्कूल ,इन स्कूलों का पंजीकरण चेक करने के लिए प्रखंड विकास पदाधिकारी, प्रखंड शिक्षा पदाधिकारी,या समाजिक सुरक्षा से जुड़े अधिकारियों के पास फुर्सत नहीं है,डग्गामार वाहन का इस्तेमाल कर इन प्राइवेट स्कूलों द्वारा बच्चों के जिंदगी के साथ खिलवाड़ करते हुए सरकारी राजस्व की क्षति पहुंचाई जा रहा है फिर भी शिक्षा विभाग के उच्च अधिकारी मौन है,प्राइवेट स्कूलों की संख्या में निरंतर वृद्धि के कारण लगातार सरकारी विद्यालयों में बच्चों की कमी देखने को मिल रहा है जिससे सरकारी विद्यालयों के शिक्षक परेशान नजर आते हैं, आखिर कब तक प्राईवेट शिक्षा के नाम पर गोरखधंधा चलता रहेगा? विद्यालय प्रबंधन द्वारा पेन पेंसिल कापी,किताब, ड्रेस,जुता,बेल्ट,टाई का बिक्री धड़ल्ले से जारी है, गौरतलब है कि प्राइवेट स्कूलों में एडमिशन के नाम पर 5000से लेकर 20000 तक की अवैध वसूली किया जाता है बिना किसी जीएसटी के, जहां एक तरफ यह विद्यालयों में अभिभावक एवं बिहार सरकार के आंखों में धूल झोंककर प्रसाशन को चुनौती दे रहा है,प्राइवेट स्कूलों द्वारा सरकारी आदेश का भी अवहेलना किया जाता है छुट्टियों में अपने ग्राहक बरकरार रखने के लिए,अब देखना यह है कि विजयीपुर शिक्षा विभाग एवं जिला शिक्षा विभाग किस तरह से इन प्राइवेट स्कूलों से निपटते हैं!या अंदरखाने से ही कामयाब हो जाते हैं।